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[ ५ तम तभामभु । ख्वालकबारी ।। लेखन-पं० अभयसोमेनालेखि ।। प्रति-पत्र २ । पंक्ति १७ । अक्षर ६० । साइज ९॥+४।
विशेष-प्रति मे ग्रन्थ दो विभागो मे लिखा हुआ है जिनमे क्रमशः ७१ और ८३ पद्य हैं । प्रथम विभाग का अन्तिम पद्य इस प्रकार है
तमन्ना वहम् आरजू चाह कहीयइ । इदो दस्त हाथों कदम पाउ गहियइ ।। ७ ।।
(अभयजैन ग्रन्थालय) (७) धनजी नाममाला । पद्य १४५ । सागर कवि आदि
दोहा पठ्या (पशु) पति सिव सुत ईस्वरी, कवलासन अरु संभु । करि प्रणान(म) सुभ देव को, सागर करहु अरंभु ॥ १ ॥ विश्नुनाम-विश्नु ना(न)रायण नरांपति वंनवाली हरि स्थांम । मधुसूदन अरु दैत्य रिपु, रावण- अरि श्रीराम ।। २ ॥
अंतअतरध्यांन नास-गुप्त तिरोहित अंतरित, गृड दुरूहनिलीय ।
लोकाजन मै लुकि सखी ईह बिधि तीय ।। ४५ ॥ इति श्री धनजी नाममाला सागर कृति समांपूर्ण। लेखनकाल–१९ वीं शताब्दी । प्रति-गुटकाकार बड़ा साइज । विविध कृतियो के साथ मे यह कृति है।
(अनूप सस्कृत लायब्रेरी)
(८) प्रदीपिका नाममाला । पद्य ३५५ । रघुनाथ । आदि
अविरल मद रेखा दिप, गनपति ललित कपोल । गंध लुब्ध मनु मगन है, पटपड करत कलोल ॥ १ ॥ हंस जान श्री सारदा, करत मधुर धुनि बीन । संत सकल सुरगन सदा, चरण कमल आधीन ॥ २ ॥ पानी घरन सकें नही, मन पहुंचे नहि ताहि । निराकार निरगुण जु है, सो सुर चे सुर आहि ॥ ३ ॥