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[ १६६ ] (१७) अष्टान्हिका व्याख्यान, सं० १८६० जैसलमेर (१८) अक्षयतृतिया व्याख्यान । (१९) होलिका व्याख्यान । (२०) मेस्त्रयोदशी व्याख्यान । (२१) श्रीपालचरित्र-वृत्ति, सं० १८६९ विजयदशमी बीकानेर । (२२) समरादित्य-चरित्र, सं० १८७३ । (२३) चतुर्विशति चैत्यवंदन । (२४) प्रतिक्रमणहेतवः।
(२५) साधुप्रतिक्रमण विधि, वालुचर । मिश्रबन्धु-विनोद के पृ० ८३२ में इनकी चार कृतियों का उल्लेख है।
(१०१) त्रिलोकचन्द्र (११८)-ये जोशी ब्राह्मण एवं ज्योतिषी थे । लालचन्द श्वेताम्बर यति के लिये इन्होंने केशवी भाषा टीका बनाई ।।
(१०२) ज्ञानसार (१२-१०८)-आप खरतरगच्छीय रत्नराजगणि के शिष्य एवं मस्त योगी एवं राज्य-मान्य विद्वान् थे। कवि होने के साथ-साथ ये सफल आलोचक भी थे। आपके सम्बन्ध में हमारा श्रीमद ज्ञानसार और उनका साहित्य शीर्षक लेख हिन्दुस्तानी वर्ष ९ अंक २ में प्रकाशित हो चुका है। विस्तार से जानने के लिये उक्त लेख देखना चाहिये । यहाँ केवल आपके हिन्दी ग्रन्थों की ही सूची दी जा रही है ।
(१) पूर्वदेश वर्णन (२) कामोद्दीपन सं० १८५६ वै० सु० ३ जयपुर के महाराजा प्रतापसिहजी की प्रशंसा में रचित (३) माला पिंगल सं० १८७६ फा० व० ९ (४) चन्द चौपाई समालोचना दोहा (५) प्रस्ताविक अष्टोतरी (६) निहाल वावनी सं० १८८१ मि०व० १३ (७) भावछत्तीसी सं० १८६५ काति सु० १ कृष्णगढ़ (८) चारित्र छत्तीसी (९) आत्मप्रबोध छत्तीसी (१०) मतिप्रवोध छत्तीसी (११) बहुत्तरी आदि के पद हैं।