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[ १६५ ] (९७) हीरचंद्र (६३)-इन्होंने सं० १६९१ में मांडली नगर में रागमाला बनाई।
(९८) हेम (विजय) (१०४-१११) ये तपागच्छीय नेमविजय के शिष्य थे। इन्होंने सं० १८६६ कातिसुदी १५ को जोधपुर गजल और भावनगर गजल बनाई।
(९९) हेमसागर (९) आपने अंचलगच्छीय कल्याणसागर सूरि के समय (२.० १७०६ भादवा वदी ९ को) सूरत के निकटवर्ती हंसपुर में शाह कूआ के लिये छंद मालिका ग्रन्थ बनाया।
(१००) क्षमाकल्याण (७१)-आप खरतरगच्छीय वाचक अमृत धर्म के शिष्य थे । आप अपने समय के प्रतिष्ठा प्राप्त सैद्धान्तिक विद्वान थे। जैन धर्म सम्बन्धी पचासों स्तवनादि और पचीसों ग्रन्थ आपके उपलब्ध हैं। यहाँ केवल उल्लेखनीय कृतियों की ही सूची दी जाती है :
(१) भूधातुवृत्ति, सं० १८२९ चैत वदी १, राजनगर । (२) गोतमीय कान्यवृत्ति, सं० १८२९, राजनगर मे प्रारम्भ सं० १८५२
श्रावण सु० ११ जैसलमेर में पूर्ण । (३ ; खरतरगच्छ पट्टावलि, सं० १८३० फागुन सुदी ९, जीर्णगढ़ । (४) आत्मप्रबोध, सं० १८३३ काति सुदी ५. मिनराबन्दर । (५) चौमासी व्याख्यान, सं० १८३५ सावन सुदी ५, पाटोधी । (६) श्रावक-विधि-प्रकाश, सं० १८३८ जैसलमेर । (७) यशोधर-चरित्र, सं० १८३९ सावण सुदी ५ जैसलमेर । (८) थावच्चा चौपाई, सं० १८४७ विजयदशमी, महिमापुर । (९) सूक्त रत्नावली वृत्ति, सं १८४७ । (१०) जीव-विचार-वृत्ति, सं० १८५० सावण सुदी ७, बीकानेर । (११) प्रश्नोत्तर सार्धशतक (संस्कृत), सं० १८५१ जेठ वदी ५, जैसलमेर । (१२) प्रश्नोत्तर सार्धशतक भाषा, सं० १८५३ वैसाख वदी १२ बुध, बीकानेर । (१३) अंबडचरित्र, सं० १८५४ असाढ़ सुदी ३ पालीताणा, आर्या खुस्याल
श्री के लिये रचिता। (१४) तर्कसंग्रह फकिका, सं० १८५४ । (१५) चैत्यवंदन चौबीसी, सं० १८५६ जेठ सुदी १३ नागपुर । (१६) विज्ञानचंद्रिका, सं० १८५९ जैसलमेर ।
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