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[ १३१ ] (२३) स्वरोदय । बैकुण्ठदास । भादि
दोहाज्योतिष दीपक जगत मे, जो प्रापत किह होय । जाके पढ़े मनुष्य को, गुह्य सुगम सब लोय ।। १ ॥ मूक प्रश्न गर्भ त्रय, मेघ धमाधम जानि । लाभालाम सुख दुःस्त्र जो, बैकुंठ सत करे मानि ॥ २ ॥
भन्त
ससि स्वर ससि बुध सुक्र है, प्रान करे जु कोय ।
भसुम मास सुभ होयगी, स्वर परीच्छा सच होय ॥ ५९ ॥ इति स्वर प्रिच्छा बैकुण्ठदास कृत स्वरोदय । लेखनकाल-सं० १९१७ मि० वि० १ ।
(वृहद् ज्ञानभंडार) (२४ )स्वरोदयः - । दोहा ६४ । भादि
सिघधरण करि घन्दना, ज्ञान सुरोक्ष्य देह । प्राण पाय इला पिगला, असुभ फल नेह ॥ १ ॥
दाहिनी नाड़ जब ही बहे । कय तत्व भागिनी तस्वकहे ।। जामे जो चाले भरू आवे । निहाचे सो नर नासही पावै॥ ६४ ।।
(वृहद् ज्ञान भंडार) (२५) स्वरोदय भाषा (गद्य) भादि
अथ सरोदो लिखते भाषाकृत
दोहापउन बीज पुसतग तहां, पिठ ब्रह्मंड बखानो ।
तत्व ज्ञान सुरदसौ निवर्ति प्रवरती जानो । पिंडे सो ब्रह्म हे प्रथधी तत्व फेरि दोठ सूर पंच पंच तस्वन के पंच पंच भेद ।
मध्य
सो सर जामतो नहीं होय तौ नेत्रम की कोर सौ भारसी मैं जानिये ।