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[ १३.] (२१) स्वरोदय । पद्य १३० । मयाराम (बाहू पंथी)। जहांनाबाद ।
भादि
अथ ग्रंथ सरोदो लिख्यते।
दोहा सस चित आनन्द रूप है, भवप अवघल जोय । नमसकार ताकू करूँ, कारज सिद्ध जु होत ॥१॥ गुरु दादूं कुं सुमर नित धनधारी सिर नाय । कव अख्यर धर साध सब, हूँ जो सल सिहाय ॥२॥ भचारज सिव जानीय, प्रगट किया जग सोय । नाम सरोदै प्रन्थ को, मैं वरन्यों भय सोय ॥३॥
दादू पन्थी सुन्द्ध उपासी, जहानाबाद जू दिली वासी ।
जिन जो जुगत भली यहुं आनी, मयाराम " " जानी ॥३०॥ लेखनकाल-२० वीं शताब्दी । प्रति-गुटकाकार । पत्र १९ । पंक्ति १० । अक्षर १७ । साइज ४॥४३॥
(अभय जैन ग्रंथालय) (२२)स्वरोदय- । पद्य २७ । बल्लभ । भादि:--
बुद्धि विमल दीजै कविहि, स्यो सुगुन सुभ छन्द । कयौँ सुरोदय ज्ञान कछु, गुरु गणपति पग बंदि ।। ।
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जैसे दपि ते माखन लीजै, छांडि हल हल अमृत पीजै । मथि के सकल सुरोदय ग्रंथ, रच्यो सुलभ स्यों भाषा पन्य ॥ २६ ॥
दोहासंस्कृत वानी कठिन, समझत पंडित राज ।
सुगम प्रन्थ बल्लम रच्ची, हृदयराम के राज ॥ २७ ॥ इति सुरोदय नक्षत्रमाला। लेखनकाल–१९ वी शताब्दी । प्रति- पत्र १। पंक्ति १६ । ऋक्षर ५० । साइज १०x४
(अभय जैन प्रन्थालय)