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(ट) शकुन, सामुद्रिक, ज्योतिष, स्वरोदय, .
रमन और इन्द्रंगाल। (१) अवयदी शकुनावली। रायचन्द । सं० (१८) १७ द्वितीय ज्येष्ठ वदि ५ नागपुर। भादि
महावीर को ध्याइक, प्रणम सरसति मात । गणपति नितप्रति जै करै, देवै बुधि विख्यात ॥१॥ गुरु चरणन को वंदणा, कीजै दीजै दान । इस विधि सेती जातां, पाइजै सनमान ॥२॥ रीले हाथ न जाइये, गुरु देवों के पास।।
अरु विशेष पच्छा विषै, मुदा श्रीफल तास ॥२३॥ गद्य
अहो पृच्छक सुणहु तुम तौ गुणवन्त बुधिवन्त हो परं तेरी बुधि अरु गुण लोक रहण देते नाही तुम्ह तो सब ही लोगु सेती भलाई करते हो सो (लो) गु तुम्हारी भलाई जाणते नांही। लोग बड़े दुष्ट है इस वास्ते स्थिर चित्र हुइ करिकै अब एक वार्ता करहु ज्यो अपणे मित्र भाई बंध है तिस मिलिज्यौ सभही कार्य तेरे भला होइगा।
संवत सतर दुतीय ज्येष्ठ वदि पंचमी सती नागपुर वणिक सरम । श्रीपाट गजीगे प्रगट भति सुजाण सिघ गुण गेह । अती रायन लिखी सुकनोती ससनेह ॥२॥ अले जतन सौं राखियौ यह अब याको सारा । कल्प वृक्ष यौ देत है वंछित फल श्री कारा ॥३॥