________________
[ ११६ ] (३२ ) सोजत वर्णन गजल । पद्य ६३ । मनरूप (संवत १८६३ काती सुद १५) भादि
चाल गजल भुरधर देश देशो मौड़, राजहि करत है राठौड़। वरणू ताहि का घाखांन, जग जन सब सचा जान ।। भनु जिहां मानसिंह भूपत्ति, राग छत्तीस सुण है रस । वाका तेज का वाखान, रटते सदा राव ही रान ।।
संवत भठार तेसह यात्र, वलि सुद मास कार्तिक वाच । पूनम तिथ के दिन पेख, दरस ही जल कीनी देख ॥ ११ ॥ तप गच्छ सदा मोटा नाम, पंडित भक्तिविजय है नाम । सहि तिन देव सूरह साख, भल शिष कवि मनरूप भाख ॥ १२ ॥
कवित:गजल कही गुणवंत भला, कवि तिण मन भावै । रीझ राव ही राण सुणे, नर अवर सरावै ॥ भावन वल अबहु बेद भेद, वांचे सु वखाण । चारण भाट ही चतुर जिके, गुण बोहोला जाणे । सोझाली नयर करनी सुकव, जे जे ठौड़ हुँती जीती। कवि सनरूप अरजह करै, गुन सव रीझौ गहा पती ॥ ६३ ।।
(प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय)