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अन्त
संवत् भठार छासह साच बलि तिहाँ मास कातक वाच । पूनम सकल को दिन देख, बदी है गजल भाव विशेष ।।३१॥ तप गच्छ धणी तालात, विजैजि न्द्रसूरि शोभत ।। सेवक भक्तिविजय कर सेव, पढी है गजल पुज पंच देव ॥३२॥
(प्रतिलिपि अभय जैन ग्रन्थालय (२३) भावनगर वर्णन । पद्य २५ । हेम । सं० १८६६ कातिक पूणिमा । आदि
पंच देव प्रणमुं प्रथम, ऋषम सत वड रोत । नेम पाश्वं बर्द्धमान नित, परम धरू चित प्रीत ॥१॥ गुण गाऊँ गुजर धरा भावनगर भल मंत । राजे सुण गुण राजघी, सुण रीक्षे सुण सत ॥२॥
छन्द त्रोटक गहिरो अत देश गुजारयं निजध्रम ब्रह्मांजु नारी नरंय । घणी ऋद्धि वृद्धि जिये घर में, धरे चित्त सुवत्त दया धरमे ॥१॥ परित नेम गुरु के पसाव, मन शिण्य हेम जल सुभाव । सुन के जु रीक्षहै नर सयान, वाह जू वाह वदह महीवान ।।२४॥
दोहा
संपत भठारह छास, पूनम कार्तिक पेख । भावनगर का गुण भला, वरण्या वि विशेष ॥
(प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय ) (२४) मंगलोर ( सोरठ) वर्णन। मादि
नाभि नन्द कुं नमन कर, संत नेम सुखकार । पार्श्ववीर पाय प्रणमता, प्राणी उत्तरै पार ।।
छन्द पद्धरी मंगर सहर मोटे मंडाण, ज्यात जगह माहि कैलास जाण । पहलो जु कोट अतही प्रचंड, नहीं इसी अधरन वही जु खंड ।।३॥
मन्त
तरुण तेज गच्छ तपे, विजय जिनेन्द्र सूरीश्वर । ज्ञानवंत गम्भीर, नमै सहू को नारी नर ।।