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उससे भी हिन्दी का सम्बन्ध दिल्ली एवं पूर्व की बोली से ही सिद्ध होता है अर्थात् हिन्दी मूलतः मध्यदेश एवं पूर्व के ओर की भाषा है।
__ मध्यप्रदेश भारत का हृदय स्थानीय होने से साधु सन्तो ने यहाँ की भाषा में अपनी वाणियाँ प्रचारित की । वे लोग सर्वत्र घूमते रहते है अतः उनके द्वारा हिन्दी का सर्वत्र प्रचार होने लगा । इसके पश्चात् मुसलमानी शासको ने दिल्ली को भारतवर्ष की राजधानी बनाया अतः उसकी आसपास की बोली को प्रोत्साहन मिलना स्वाभाविक ही था। इधर ब्रजमंडल जो कि भगवान कृष्ण की लीलाभूमि होने के कारण, हिन्दुओ का तीर्थधाम होने से एवं राजपूताना उसका निकटवर्ती प्रदेश होने के कारण ब्रजभाषा का प्रचार राजस्थान में दिनोंदिन बढ़ने लगा। महाकवि सूरदास आदि का साहित्य
और वल्लभसम्प्रदाय के राजस्थान मे फैल जाने से भी ब्रजभाषा के प्रचार में बहुत कुछ मदद मिली। राजपूत नरेशों ने हिन्दी के कवियो को बहुत प्रोत्साहन दिया। ब्रज के अनेक कवियो को राजस्थान के राजदरवारो में आश्रय मिला। फलतः सैकडों कवियो के हजारो हिन्दी ग्रन्थ राजस्थान मे रचे गये। अन्यत्र रचित उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थो की प्रतिलिपियें कराकर भी राजस्थान में विशाल संख्या में संग्रह की गई जिसका आभास राजस्थान के विविध राजकीय संग्रहालयों एवं जैनज्ञान भंडारों आदि मे प्राप्त विशाल हिन्दी साहित्य से मिल जाता है।
वैसे तो हिन्दी का विकास ८ वीं शताब्दी से माना जाता है और नाथपंथीयोगियों और जैन विद्वानो के विपुल अपभ्रंश काव्यों से उसका घनिष्ट सम्बन्ध है पर हिन्दी भाषा का निखरा हुआ रूप खुसरो की कविता में नजर आता है । यद्यपि उनकी रचनाओ की प्राचीन प्रति प्राप्त हुए बिना उनकी भाषा का रूप ठीक क्या था, नही कहा जासकता । उसके पश्चात् सबसे अधिक प्रेरणा कबीर के विशाल साहित्य से मिली है। नूरक चंदा-मृगावती, पद्मावत आदि कतिपय प्रेमाख्यानो से १५ वी १६ वीं शताब्दी के हिन्दी भाषा के रूप का पता चलता है पर इसका उन्नतकाल १७ वीं शताब्दी है । सम्राट अकबर के शान्तिपूर्ण शासन का हिन्दी के प्रचार मे बहुत बड़ा हाथ रहा है । वास्तव मे इसी समय हिन्दी की जड़ सुदृढ़ रूप से जम गई और आगे चलकर यह पौधा बहुत फला फूला । हिन्दी ने अपनी अन्य सब भाषाओ को पीछे छोड़ कर जो अभ्युदय लाभ किया वह सचमुच आश्चर्यजनक एवं गौरवास्पद है।
१-सरहप्पा, कण्हपा, गौरक्षपा, आदि नाथपंथी योगी एवं जैन कवियों के रचना के उदाहरण देखने के लिये 'हिन्दी काव्य धारा' ग्रन्थ का अवलोकन करना चाहिये ।