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ज्ञान दीप कवि नान कहि, कीने हित चित लाइ । सीखजु ग्रंथन में हुती, कथो सकल सुखदाइ ।
भंत
संवत सोलह से जु छयासी, जान कवी यह बुधि परकासी । तिथि बारस बदिहिं बैसाख, दस दिन मांहि सुनाई भास्त्र ।। बुधि परवान सुनाई गाइ, खोर दूर करि लेहु बनाइ ।।
सिधि निधि घर में बहु भई, भाप सम्हारे काम । राज कियौ तेसठ बरस, सुख रस सों बहराम ।। सुख रस सौ बहराम, जाम आठों बीतत है ।
रूम चीन अरू मारली, बहु विष बादी रिधि ।
आप संभारे ते भई, घर में यों नौ निध सिधि ॥१॥ इति श्री कवि जान कृत ज्ञानदीप संपूर्ण ।
लेखन-काल-संवत् १८९२ मिति चैत्र सुदि १३ दिने लिखितं प्रतिरियं लक्ष्मीचंद पतिना नवहर मध्य चिरं सखतसिध पठनार्थ न करे।
प्रति-(१) पत्र २३ । पंक्ति १५ । अक्षर २४०। (जिन चरित्र सूरिज्ञान भंडार )
(२) पत्र १६।
(जयचन्द्रजी भंडार)