________________
[ ८७ इति वैतालपचीसी विक्रमचरित्रे भगतदास विरचिते । कथा पचीस समाप्त । लेखन काल-१८ वी शताब्दी । प्रति- पत्र ४८ । पंक्ति २ । अक्षर ४२ से ४५ । साईज १०४५। विशेष-प्रति बहुत अशुद्ध है।
(अनूप संस्कृत लायनेरी ) (२०) शनिसरजी री कथा । विजयराम । आदि
श्री गुरु श(च)रण सरोज नमो, गणपत गुण नायक । नमो शारदा सगत विगत, वाणी सुख दायक ॥ नमो राधका रचन, नमो पारवती प्यारा । नमो वीर बजरंग, लाल लंगोट वारा ॥ सुर गुरु मुनि अरु संत जन, सब के प्रणसु पाय । रचं कथा रविपुत्र की, मोय सुध खुध देहो सहाय ॥ १॥ व्यास पुन शुखदेव नमो, सद ग्रन्थ सुणायो । घालमीक मुनि नमो, बड़ो हरि चरित्र वणायो । नमो सूरदा संत, कृष्ण की कीरत गाई। सुलछी जिनकुं नमो, वनै पुत्रका वणाई ॥ केशव नरहर और कवि, जा घर प्रभु की जोत । विजैराम चरणन किया, मन बुध निर्मल होत ॥ २॥
कुंडलियाआशायत दुर्गेश को गादी बैठक गाम । लूणी कोठे वसत है, समदरड़ी सो नाम
" स्याम रो स्याम विराजै । चरण कमल की सेवा सदा विजैराम साजै कविजन किरपा करी, सुख सोनग अरु व्यासा बालमीक जे देव, सूर तुलसी विसवासा सवै संत सिरपर वस्या, उरें विराजो श्याम कथा रसक रवि पुत्र की वरण करी विजैराम ॥१५॥ भाद अत दोहु अंक, बाहु पर बिंदु आई जोम घड़ी कुं जोड, समत के वरष गिणाई रवि चढयो तुलरास रवि सुतवार विराजै सौ पोदस उस कला संयुक्त राकापति ऊपर राजै