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________________ .. [७७ ] सोरठा सब रस लता सुनाउं, मधि सिंगार अरु प्रेम रस । विरह अधिक फुनि ताम, सुनति अधिक सुख ऊपजै ॥ ७७ ॥ चौपाई संघत सोलह सै श्रेयानु भाद्रमात सुकल पख जानु । पंचमि चौथ तिथें संलगना दिन रविवार परम रस मगना ॥७९॥ दोहा सिंध नदी के कंठ पइ मेवासी चो फेर । राना बली पराक्रमी कोऊ न सके घेर ॥ ७९ ॥ चौपाई पूरा कोट कटक फुनि पूरा, पर सिरदार गाठ का सूरा । मसलत मंत्र बहुत सु जाने, मिले खांन सुलताण पिछाने ॥८॥ दोहा सइदा को सहिबाजखां यहरी सिर कलपत्र । जानत नाही जेहली, सब अचान को छत्र ॥८॥ चौपाई रईयत बहुत रहत सुंराजी, मुसलमान सुखा सनि माजी। चोर जार देख्या न सुहावै, बहुत दिलासा लोक वसावै ॥४२॥ . दोहा वसै अढोल जल्लालपुर, राजा थिरु सहिबाज । रईयत सकल वसै सुखी, जव लगि थिर न राज ॥८३॥ चौपाई यहाँ वसत जटमल लाहौरी, करनै कथा सुमति तसु दोरी । नाहर वंश न कुछ सो जाने, जो सरसति कहै सो आने ।।८४॥ सोरठा धतुर पढो चित लाय, सभ रसलता कथा रसिक । सुनस परम सुख दाय, श्रोता सुन इह श्रवण दे ॥८५।।
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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