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चुटकियो (पलो) मे मर जायेगी ।" नायिका को विरहताप से छुटकारा दिलाने मे किसी प्रकार का भेषज्य (उपचार) कार्य नही करता उसके लिए तो बस एक नायक ही अद्वितीय उपचार है -
लगीरमलसमकलसुग्रपमुहहिं किं इमाइ भेसज्ज ।
लल्लक्कलस: सोच्चिन तरुणो तया लइग्रहारो ।।7115118.।
"लना ग्रो का रस, वक्षो का दध, तैलादि भपज्यो से क्या लाभ । इस भयानक कामरोग मे तो इनके गले का हार वह युवक ही (अद्वितीय भेषज्य है)।" विरह ताप के कारण रात-दिन विरहिणी को नीद नही त्राती। सखिया उसे निद्राकारी-लता के पत्ते पीसकर पिलाती है परन्तु किसी भी प्रकार वह काम-सर-हता रमणी निद्रा नही प्राप्त कर पाती।
__इस प्रकार वियोग दुविता नायिका को न रात मे चैन है न दिन मे । "कृत्तिका नक्षत्र के समाप्त हो जाने के बाद दिन के छोटे हो जाने पर प्रिय विरह से तापित रमणियो की रातें एक युग के समान हो जाती हैं 12 सखी कहती है "कामवधिक तम अत्यन्त मलिन कर्मा हो जो बादलो की गर्जना से विनष्ट विरहिणी का हनन कर रहे हो ।"3 वर्षा ऋतु सामान्य जनो को प्रिय होती है परन्तु नायिका के लिए वह भी परम उत्तापक है । नायिका की सखी नायक से कहती है-"खुले हुए केशो वाली वह वाला, तुम्हारे विरह की अग्नि से बभणी नामक कीडे की भाति सतप्त (छटपटा रही) है । चातक के वोलने तथा "घने वादलो की गर्जना से उसे और भी आराम नही मिलता ।"4
इस प्रकार सयोग और वियोग के अनेको कलात्मक प्रसग 'रयणावली' की अमर निधिया हैं। मूल रूप से व्याकरण और भाषाशास्त्र का ग्रन्थ होते हुए भी यह कोश अपने शृ गारिक पद्यो के अाधार पर किसी भी साहित्यिक ग्रन्थ के जोड मे रखा जा सकता है। 'रयणावली' के शृगारिक पद्य तत्कालीन गुजरात के सुललित ऐहिकता परक जीवन को व्यक्त करने मे अत्यन्त सफल है। इन पद्यो मे प्राचार्य हेमचन्द्र का कवित्व भी निखर कर सामने आता है। इस दृष्टि से 'रयणावली' का अध्ययन विल्कुल ही नहीं हुआ है, इस दिशा मे चलकर यदि विचार किया जाये तो 'रयणावली' सचमुच रयणावली (रत्नावली) अर्थात् अमूल्य एव साहित्यिक सौन्दर्य
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दे० ना0 मा0 7128134 वही 5150162 वही 716172 वही 6174190
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