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मे युक्त पद्यो की निधि सिद्ध होगी । कम से कम इसमे शृंगारिक पद्य तो सतमई परम्परा की किसी भी कृति के पद्यों के जोड़ मे कम मूत्यवान नही हैं ।
कुमारपाल की प्रशस्ति से सम्वन्धित पद्य
लोक-जीवन की श्रृंगारपरक ललित भावनाओं की अभिव्यक्ति करने वाले शृंगारिक पद्य के प्रतिरिक्त 'रयरणावती' के लगभग 105 पद्यो मे ग्राचार्य हेमचन्द्र ने अपने त्राश्रयदाता राजा कुमारपाल के यश और शौर्य का प्रशस्तिपरक वर्णन प्रस्तुत किया है । इन पद्यो मे कही कुमारपाल की वीरता, कही दानशीलता तो कही-कही धर्मशीलता की प्रशंसा की गयी है। अधिकतर पद्यो मे कुमारपाल के पराक्रम, उसकी युद्धवीरता तथा स्वय की भोग्ता से डरे हुए उसके शत्रुओ का ही वन किया गया है । कुमारपाल के पराक्रम से त्रस्तु उसके शत्रु अपना घर बार तथा हासविलास छोड़कर जगलो, गिरि, गहू वरो यादि मे छिपते हुए प्रारण वचा रहे हैं, बस इसी प्रकार की भावना लगभग सारे पद्यो मे विद्यमान है । कुमारपाल के गुग्गो और उसकी समृद्धि का भी वर्णन कुछ पद्यो मे हुग्रा है । कुछ एक पद्य उसकी विजयो से भो सम्वन्धित हैं । इन सभी प्रसगो ने मम्वन्वित कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं ।
कुमारपाल के पराक्रम से त्रस्त होकर रणक्षेत्र से भागते हुए शत्रुग्रो की दशा का वर्णन करते हुए प्राचार्य कहते हैं
श्रग्गक्खन्त्रपलावरण श्रहिरीया कुमरवान तुह रिउणो ।
प्रोवीहन्ति अलीसयगिउन ग्रवखलिन अप्प मद्देवि 11112512711
"कुमारपाल 1 रणमुख मे नागे हुए कान्तिहीन, तुम्हारे शत्रु शाकवृक्ष के निकुज मे अपने ही शब्द की प्रतिध्वनि से त्रस्त हो रहे हैं ।" कुछ शत्रु तो "अपकीर्ति की गणना न करते हुए अगुलीयक श्रादि ग्राभरणो को त्यागकर ररण से भागकर कापालिक के वेश मे घूम रहे हैं । "
कुमारपाल के डर मे उसके शत्रु अपने घरो में भी छिपने का स्थान बनाकर रहते हैं
खड्डाघरेमु खत्त वप्पे वण्ण च वासभवणम्मि ।
खलिभोग्रणाण सल्लम्बरा तुह वेरिमाण वी खड्ड 112154166
“श्राञ्चर्य है, खली का भोजन करते हुए, चर्मधारी, दाढी मू छ aढाये शत्रु अपने घर तथा निवास के कमरो मे ( भी ) गड्ढे बनाकर रहते हैं ।"
1. दे० ना० मा० 1-29-31
हुए तुम्हारे