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________________ __88 ] अरे परे न करे हियो खरें जरे पर जार । लावति घोरि गुलाब सो मिले, मिले घनसार ॥1 यहा यद्यपि उपचार की वस्तुए भिन्न हैं परन्तु दोनो विरहरिण यो की मनो. वृत्ति मे पर्याप्त समानता है । इसी प्रकार हेमचन्द्र ने एक अन्य पद की भी तुलना विहारी के एक दोहे की जा सकती है । नायिका की ससी नायक से उसके (नायिका के) विपम विरहताप का वर्णन करती हुई बताती है - सपत्तिाइ सण्णत्तिमम्मि तुज्झ विरहग्गिणा हिअए । सच्चेविग्राउ माला सदजलद्दया य सुक्कन्ति ।।8:23118।। "तुम्हारे विरह की अग्नि से परितापित, उस बाला के हृदय पर रखी गयी पुष्प की मालाए और जल से भीगी हुई वस्तुए भी सूख जाती हैं।" इमी प्रकार बिहारी की भी एक नायिका विषम विरह ताप से तापित है। उसके ताप को शमित करने के लिए मखिया पूरी गुलाब जल की सीसी ही आँवा देती है, परन्तु वह सबका सब बीच मे विरहताप से सूख जाता है । एक छोटा भी उनके शरीर पर नहीं पड़ता।' वात दोनो एक ही हैं, पर स्तर का अन्तर होने के कारण दोनो मे भेद आ गया है । प्राचार्य हेमचन्द्र की नायिकाए जिस वर्ग से सम्बन्धित हैं, वह वर्ग इत्र, तेल, फुलेल अादि की बातें नहीं जानता वह तो सहज प्राप्य वस्तुप्रो का ही प्रयोग करता है । विरह शमन के लिए फूल की मालाए और जल मे भिगोयी हुई वस्तुए उसके लिए सुलभ हैं । बिहारी की नायिकाए विलासी मुगल दरवारो की नागरी नायिकाए हैं । इसीलिए उनका उपचार भी उसी स्तर का मिलता है | जहा तक मूल भावना और कार्य का सम्बन्ध है, दोनो मे पर्या त समानता है । अन्तर इतना ही है कि हेमचन्द्र का वियोग चित्रण प्राय यथार्य और अभिधात्मक है। बिहारी की भाति ऊहात्मक उक्तिया उनमे कम ही हैं। हेमचन्द्र की एक अन्य वियोगिनी नायिका प्रिय वियोग मे अन्यन्त उदासीन और विरहाग्नि से सतप्त है। उसकी दशा देखकर चिन्तित हुई सखी नायक के पास जाकर उससे बताती है - सेज्जारिअ ण इच्छइ सेवालजयक्ख सोमहिड्डे अ। मरिही सेहरथरिणा कइवयसेवाह एहि तुह विरहे ।।8148143 "झूले मे झूलने की इच्छा नहीं करती, कमलो और किचडेली (गीली, ठडी) जगहो मे रहने की इच्छा नहीं करती। वह चक्रवाकस्तनी तुम्हारे वियोग मे कुछ ही 1 2 विहारी रत्नाकर, दो0 स0 529, पृष्ठ 218 विहारा रत्नाकर, दो स. 217, १० 91
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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