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________________ [ 77 विपरीत रति प्रादि के चित्रण मे कवि अत्यन्त यथार्थवादी है । अव यहा एक-एक का अनग-अलग विवेचन समोचन होगा। सयोग वगन ___ यणावली' के मगोग-चिग अत्यन्त मागल, स्पष्ट पीर उभरे हुए हैं । स्थानस्थान पर नभोग प्रिया में रत नायक और नायिवानो की चर्चा हुई है । इन चित्रो मेनामीग जीवन की समस्त काम-भावना नाकार हो उठी है । कुलटायो, निम्न वर्ग की स्त्रियो और वयानो के पाट व उगरे हुए मभोग चित्र तो सर्वथा दर्शनीय है । भयोग के अधिकतर चिम विपत अन्य पानीय थन और दूतीवचनो के रूप में सिविन किये गये है। स्यगावली के गुछ सयोग चित्रो का उदाहरण नीचे दिया जा रहा है नायक धोर नायिका प्रागे-पीछे चले पा रहे है । नायक प्रसन्न और (कामावैग के कारण) ग्रारत्त मुग दिसाई दे रहा है। नायक की इस प्रसन्नावस्था का चित्रण कितना व्यजनापूर्ण हैं 'अम्मामा दिपणवहेन तुह रे प्रवत्यरा रिहइ । गावन्निय जं जावय रसेण त किसलिग्रो असोउव्व ।। 1-22-20 ॥ 'युवक । अवश्य ही तेरे पीछे-पीछे पाने वाली युवती ने तुझे अपने महावर मरे पैरो मे ठोकर मारी है जिसके कारण तू अशोक वृक्ष के समान प्रफुल्लित हो उठा है।' नायक की प्रसन्नता का कितना व्यजनापूर्ण कारण बताया गया है । मान की अवस्था में नायक निश्चित ही नायिका के चरणो पर लोटा है तत्पश्चात् उसके प्रनाद से प्राहादित पीर हरा-भरा तथा आरक्त मुख दिखायी पड रहा है । यह तो एक अत्यन्त प्रमिद्ध माहित्यिक रूढि है कि अशोक मे पुष्प तभी पाते हैं जब कोई मदसिक्त नवयौवना अपने पालक्तक भरे चरणो से उस पर प्रहार करती है। इसी रूटि का सहारा लेकर नायक की प्रसन्नता और उसके तमतमाए हुए मुख के रग का वर्णन कितना व्यजनापूर्ण है । ___ जगल मे नायक-नायिका क्रीडारत हैं । क्रीडा के बीच नायिका के गले मे पहना हुया ग्रेवेयक टूट कर गिर पडा, कचुकी फट गयी । यह देखते ही रति तृषित नायक ग्रेवेयक को उठाकर छिपा लेता है। कितना मासल और उत्तेजक सयोगचित्र है। 1. दे० ना0 मा0, 2194179
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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