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76 ] उच्च कोटि के साहित्यिक उदाहरण देखने को नहीं मिलते । इन गाथाम्रो को देखकर प्राचार्य हेगचन्द्र के लोकज्ञान और उनकी गम्भीर कवित्त्व प्रतिभा मे चकित रह जाना पड़ता है। प्राचार्य हेमचन्द्र की यह माहित्यिक अभिरुचि उनके अपघ्र ण व्याकरण मे भी देखी जा सकती है । परन्तु वहा पाये हुए मग्म पद्य उन्होंने अनेको कवियो की रचनायो से लिये ये । 'रयगावली' के उदाहरणो में उनकी उच्च कोटि की मौलिकता सम्पन्न प्रतिभा उभर कर आयी है। उदाहरण की इन गाथायो में ऐहिकता परक शृगार, रतिभावना, नस-णिय चित्रण, रणागणगत वीरता, प्रकृति के सुन्दर मनमोहक चित्र तया विविध लोकव्यवहारी एव उत्सवी का चित्रण हुमा है। इन गाथानो में निहित एक-एक चित्र अपने पाप में अत्यन्त भाव तरल एव प्रभावकारी है। 'रयणावली' को गायानो की विषय वस्तु
विषय वस्तु की दृष्टि से 'रयणावली' के पद्यो को तीन कौटियो मे रम्बा । जा सकता है
(1) लौकिक प्रेम और शृगार से सम्बन्धित पद्य । (2) कुमारपाल की प्रशस्ति से सम्बन्वित वीर भावना के उद्भावक पद्य । (3) विविध लोकाचारो, सामाजिक एव नैतिक नियमो, देवी-दवतानो
तथा भिन्न-भिन्न प्रादेशिक रीति-रिवाजो व अन्धविश्वासों से सम्बन्धित
पद्य । (1) लौकिक प्रेम और शृगार से सम्बन्धित पद्य
'रयणावली' का कवि लौकिक प्रेम और शृ गार-भावना का पटु उद्भावक है। पूरे ग्रन्य में इस कोटि के पद्यो की मव्या ही अधिक है ।। इन पद्यो मे निहित ” गार, सयोग, वियोग, विपरीतरति तथा हालिक युवक युवतियो की उन्मुक्त प्रेमक्रीडा अत्यन्त विशद एव कलात्मकता से युक्त है । गाहासत्तसई के पद्यो की भाति इसके पद्य भी ग्रामीण जीवन की तरल गारिक अनुभूतियो को प्रश्रय देने वाले हैं। रात-दिन परिश्रम में रत रहने वाले कृपक युवक युवतियाँ, वनी वर्ग के विलासी पुरुप-स्त्रियाँ तथा वेश्यानो और नगरवधुप्रो की उन्मुक्त कामक्रीडायो का स्पष्ट अकन स्थान-स्थान पर हुआ है । 'रयणावलीकार' स्त्रियो और पुष्पो की स्वच्छन्द काम-क्रीडात्रो को चित्रित करने मे कही भी हिचकते नही । उन्मुक्त काम-मोग और
1 विशेष विवरण के लिए प्रस्तुत प्रवन्ध का द्वितीय अध्याय द्रष्टव्य है।