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रयणावली (देशीनाममाला) का
साहित्यिक अध्ययन
प्राचार्ग हेगचन्द्र कृत रयणावली (देशीनाममाला) भारतीय आर्य भाषा की एक अमुल्य भाषा वैज्ञानिक कृति होने के माथ ही इस परम्परा की प्राकृत भाषाम्रो की एक बहुमूल्य साहित्यिक निधि भी है । इस कोशग्रन्थ मे सकलित 'दृश्य' शब्दो को कण्ठन्य करने तथा उनके प्रयोग को दिसाने की दृष्टि से प्राचार्य ने पूरे ग्रन्थ मे कुल 6341 गायानो की रचना की है। ये गाथाए सरसता, भावतरलता एव काव्यगत नौन्दर्य की दृष्टि मे अत्यन्त उच्चकोटि को हैं । साहित्यिक सौन्दर्य और ऐहिपतापरक अभिव्यक्ति की दृष्टि ने इन गाथाम्रो की समता 'गाहासत्तसई' तथा परम्परा की अन्य कृतियो से की जा सकती है। ग्रन्थ मे गाथाम्रो की सख्या भी उन मान्यता को दृढ बनाती है । हो सकता है प्राचार्य हेमचन्द्र ने इन गाथानो की की रचना गाहामत्तमई जमे ग्रन्यो को ध्यान में रखकर किया हो । जहा तक विषय वस्तु और उमके वातावरण का प्रश्न है, यह बात सर्वथा उपयुक्त है । स्वय प्राचार्य द्वारा दिया गया इस कोशग्रन्य का 'रयणावली' (रत्नो की माला) नाम भी इसी तथ्य की ओर सकेत करता है । सचमुच 'रयणावली' की अनेको गाथाए गाहासत्तसई और गोवर्द्धन कृत 'आर्यामप्सती' के पद्यो के समान ही भावप्रवणता और उच्चकोटि की साहित्यिकता से युक्त हैं। सारे विश्व के किसी भी कोशग्रन्थ मे इतने
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उदाहरण को मभी गायाए हेमचन्द्र फत नही हैं। कुछ गाथाए उन्होंने अपने पूर्ववर्ती देशीकारो की रचनामो से लिया है। इस दष्टि से छठे वर्ग की 78वी गाथा तथा 8वें वर्ग की 14वी गाथा विशेष उल्लेखनीय हैं।