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भी उच्चकोटि के साहित्यिक सौन्दर्य मे मण्डित है । इसकी उदाहृत गाथाए मरमता भावतरलता एव कलागत सौन्दर्य की दृष्टि मे "गाथासप्तशती" के समान ही साहित्यिक मूल्य रखती है । इसमें 7 गार, रति भावना, नख मिस-चित्रण, निको के विलासभाव, रणागरण की वीरता, सयोग, वियोग, कृपणो की कृपणता, विभिन्न प्राकृतिक रूप और दृश्य नारी की मामल एव ममृण भावनाए तथा नाना प्रकार के रमणीय दृश्य अकित हैं। इन गाथायो मे स्थान-स्थान पर नीति, उपदेश, सामाजिक-रीतिरिवाज, राजपराक्रम तथा प्रेमी-प्रेमिकायो की विलास लीला वरिणत मिल जायेगी । विश्व की किसी भी भाषा के कोश मे इसके ममान मरम पद्य उदाहरण के रूप मे नही मिलते । कोषा मे आये हुए कठिन देशी शब्दो को समझाने का जो सरल मार्ग हेमचन्द्र ने अपनाया है वह सर्वथा नवीन और हेमचन्द्र को मौलिक प्रतिमा का दिग्दर्शक है।
इस प्रकार प्राचार्य हेमचन्द्र की "देशीनाममाला" या "रयणावली" यदि मापा विज्ञान की दृष्टि से मूल्यवान् शब्दो की खान है तो साहित्य की दृष्टि से एकत्र बहुमूल्य पद्यरत्नो की निधि है ।
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