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________________ ___78 ] खेत की रखवाली करती हुई गोपवाला का एक उमपा हुया सभोगचित्र द्रष्टव्य है उम्हाविन उलुहालिग्रय वयम माणेमु तत्य गन्तूण । उच्छुरणेमोजिग्गिग्योच्छुप्ररण गोविग्राइ उवललय ॥ 1-117-101 ।। ममोग कर लेने के बाद भी अतृप्त रहता हुया समवयस्क पुग्प, अत्यन्त अस्त हुई ईस को रखवाली करने वाली गोपिका के माय, ईस के खेत में प्रनिद्रित मैथुन क्रिया मे ग्त है।" इमी प्रकार के अभिसार के अनेको मादक चित्र 'रयगावली' की अपनी निधिया हैं । कुलटा स्त्रियों का अभिसार चित्र द्रष्टव्य है ग्वुपा खुण्ण तणो खर खुवयप्फाडिअन्त खलुहायो । वामारते कुलदाउ खुट्टिनत्य प्रह्मिरन्ति ।। 2-75-63 ।। वृष्टि के निवारणार्थ तृण के प्रावरण मे वेष्टित, अत्यन्त तीण एव कटीले तृणादि से विवे हुए शरीर वाली कुनटाए गत-दिन मैथुन करती हुई अभिमार कर रही हैं ।' एक अन्य कुलटा मच्छर क्षादि से युक्त सूबे वृक्ष के नीचे पलकें बन्द किये एक अधम स्वर्णकार के माथ अमिसार रत है। इसी प्रकार कुलटागों के अभिमार के अनेकों सजीव चित्र 'रयगावली' में देखे जा मरते है । ऐसे चित्रो मे प्राय निम्नवर्ग के नायक और नायिकामो की ही प्रधानता है . नायक गोप की छेड़-छाड से घबराई हुई गोपवाला खीझकर कहती हैमा कड्ड बजर मह ववहिप्रवच्छीव स्ववेटुल्ल प्रोपेच्छह कुडिलच्ची बहुणिया म महत्तवत्तारा ॥ 7141135 'रूपगवित मत्तगोप मेरी नीवी मत खीच । स्वरूपविता मेरी ज्येष्ठमार्या कुटिल प्रावो मे देख रही हैं।' प्रिय मिलन के लिए प्राकुल एक ग्रामीण नववधू का चित्र तो मर्वथा सराहनीय है रणववत्यउद्रय वक्वारयम्मि वल्लादयल्ल पल्लह के । लुढिया रिणएइ वढ्ढाविअण्णकज्जा वहू दइअमग्ग ।। "घर का सारा कार्य समाप्त कर-नवीन वस्त्रो से युक्त होकर, सुन्दर-पौया से युक्त रति-गृह मे ववू पति का मार्ग देखते हुए उलट पुलट कर रही है।" 1. दे० ना0 मा0 3150-42
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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