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वर्ग गरमा
गाथारो की सख्या
174
112
प्रथम द्वितीय तृतीय चतुर्य पनम
62
वर्ग जिनमे प्रारम्भ होने वाले शब्दवर्ग में प्रात्यायित है।
स्वर वर्ण कठ्य वर्ण तालव्य वर्ण मद्वंन्यवर्ण दन्त्यवर्ण प्रीव्य वर्ण अन्त म्य वर्ण ऊपम वर्ण
51
63
148
सप्तम
96
पाटम
77
कुल
783
ऊपर की तालिका मे दिमाये गये 8 वर्गों की 783 कारिकानो मे कुल 3978 देशी शब्दो का प्रत्याख्यान किया गया है । शब्दो की संख्या की दृष्टि से प्रथम वर्ग मे लगभग 787, द्वितीय मे लगभग 570, तृतीय मे लगभग 327, चतुर्थ मे लगभग 265 पचम मे लगभग 312, पष्ठ मे लगभग 800 सप्तम मे लगभग 825 और अष्टम मे केवल 92 देशी शब्दो का उल्लेख किया गया है । वृत्ति या टीका भाग
सिद्धहेम शब्दानुशासन' की भाति हेपचन्द्र ने अपने इस कोश ग्रन्थ को भी टीका स्वय ही लिखी है । 'देशीनाममाला' की मूल गायाए प्राकृत मे है । इन गाथानो मे निहित शब्दो के भाव को समझाने तथा ग्रन्थ को प्रामाणिक एन महत्त्वपूर्ण सिद्ध करने के लिये इन्होने इसकी टीका सस्कृत भापा मे लिखी। यह बात तो विल्कुल सच ही है कि यदि हेमचन्द्र अपने इस ग्रन्थ की मूल गाथानो पर टीका न लिखते तो इम कोश का समझना सामान्य लोगो के लिए अत्यन्त दुरूह होता । देशीनाममाला मे निहित विपय अत्यन्त विवादास्पद हैं । भाषामो के अथाह सागर मे बून्द के समान देशी शब्दो को अलग कर उनका पास्यान करना और विभिन्न विवादो से बच निकलना एक कठिन काम था। इसके लिए एक विस्तृत तर्क पूर्ण पृष्ठभूमि की आवश्यकता थी। हेमचन्द्र ने इसी भावना से सस्कृत टीका लिखी होगी। टीका को देखने से पता चलता है कि उन्होने जितने भी शब्दो को देशी कहा है उनका कोई न कोई कारण है । और इन्ही कारणो का स्पष्टीकरण वे अपनी सस्कृत टीका मे करते चलते हैं । वे स्वय ही बताते हैं कि परम्परा मे कई ‘देशीकार' हुए हैं परन्तु इनमे से