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601 अधिकतर अनेकों भूलें करने वाले है। हेमचन्द्र उनकी कमियो की प्रोर मकेत करते हैं। यह सारा कार्य वे मूल गाथा ग्रो की छोटी मी मीमा के भीतर नहीं कर सकते थे । एक जगह प्राचीन देशीकारो की सराहना करते हुए तथा प्रावुनिक (अपने समकालीन) देशीकारो और उनके व्यारयातायो की अवमानना करते हुए लिखते हैंअधुनातन देशी काराणा तद्व्यात्यातृरणाच कियन्त समोहा परिगण्यन्ते ।।
प्राचार्य हेमचन्द्र ने अपने इम कोश मे लगभग 4000 शब्द मालित किये है। इनमे केवल 1500 शब्द ही ऐसे हैं जिन्हे 'देशी' कहा जा सकता है।' शेष कुछ तो तत्सम हैं, कुछ तद्भव और कुछ अर्द्ध तत्सम । परन्तु प्राचार्य सभी शब्दो को 'देगी' ही कहते हैं। इसके लिए वे कही परम्परा का महारा लेते हैं तो कही किमी विद्वान का । "देशीनाममाला" मे मकलित कोई भी ऐमा तत्मम या तद्भव शब्द "देणी" के रूप मे संग्रहीत न मिलेगा, जिसके लिए हेमचन्द्र ने टटकर तर्क न दिया हो । इन तत्सम या तद्भव शब्दो का ग्रहण कहीं वे पूर्वाचार्यानुरोधात् "कही अप्रसिद्धत्त्वात्" तो कही (मेरी राय मे) प्रमादत्वात् (यद्यपि कही वृत्ति मे यह पाया नहीं फिर भी कई जगह हेमचन्द्र प्रमाद कर गये हैं) करते है। इन सभी बातो का प्रतिपादन उन्होने ग्रन्थ की स्नोपज्ञवृत्ति (टीका) मे ही किया है।
हेमचन्द्र के इस ग्रन्य के वृत्ति भाग की विशिष्ट महत्ता परम्परा मे हुए देशीकारो के उल्लेख के कारण भी है। प्राचार्य हेमचन्द्र ने अपने द्वारा सकलित शब्दो को देशी सिद्ध करने तथा अन्य प्राचार्यों द्वारा "देशी" कहे गये शब्दो को कही-कही न मानने के सदर्भ मे, पूरे ग्रन्थ के वीच कुल 12 देशीकारो का नामोल्लेख किया है । जहा-जहा और जिन-जिन कोशकारी का नाम लिया है उमका विवरण इस प्रकार है। 1. अभिमान चिह्न
इन्होने सूत्र रूप मे एक "देशीकोश" की रचना की थी। इसके साथ शब्दार्थ सूची और उदाहरण भी दिये गये थे। इनकी व्यास्या उद्खल नामक विद्वान् ने की थी यद्यपि इन्होने कई जगह उनके सूत्रो को न समझ कर भूलें की हैं हेमचन्द्र ने अपने इम ग्रन्थ मे इनका उल्लेख-1-144, 6-93, 7-1, 8-12,17 मे किया है। 2 अवन्तिसुन्दरी :
इस नाम की विदुपी का उल्लेख हेमचन्द्र ने "देशीनाममाला" मे तीन स्थानो
1. अब तक दे ना. पर कार्य करने वाले रामानुजस्वामी प्रभूति विद्वानो का यही मन्तव्य