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द्वितीय वर्ग कण्ठ्यव्यजनवर्ग कहलाता है इसके अन्तर्गत क्रमश क, ख, ग, घ व्यजनो से प्रारम्भ होने वाले 'देशी' शब्दो का सकलन किया गया है । तृतीय वर्ग में तालव्य व्यजनो च, छ, ज, झ से प्रारम्भ होने वाले शब्दो का समाहार किया गया है । चतुर्थ वर्ग मूर्धन्य वर्णो ट, ठ, ड, ढ, ण से प्रारम्भ होने वाले शब्दो से युक्त है । पचमवर्ण दन्त्य त, थ, द, ध, न मे प्रारम्भ होने वाले शब्दो का समूह है पप्ठ वर्ग प्रोष्ट्य प, फ, ब, भ, म वर्णों से प्रारम्भ होने वाले शब्दो का मकलित स्प है। सप्तम वर्ग अन्त स्थ व्यजनो य, र, ल, व तथा दन्त्य स मे प्रारम्भ होने वाले शब्दो का सकलन है । अष्टम वर्ग में केवल ऊमवणं-ह से प्रारम्भ होने वाले शब्दो का सकलन हुआ है।
इम ऊपर गिनाये व्यजन वर्गों मे शब्दो का पाख्यान व्यजनो में निहित स्वरो के क्रम से किया गया है-जैसे कण्ठ्यवर्ग के क् से प्रारम्भ होने वाले शब्दो का पाख्यान करते समय प्राचार्य सर्वप्रथम प्रकारान्त क् से प्रारम्भ होने वाले शब्दो का पाख्यान करते हैं जैसे
कल्ला कविस मज्जे कलिकल्लोला विवक्सम्मि । कच्च कोडुम्ब कज्जे कस्सोकच्छरो अ पड कम्मि ।। 211
इस गाथा मे कल्ला, कविस, कली तथा कल्लोल, कच्च, कच्छर प्रादि शब्दो का आदिभूत व्यजन क् अ स्वरसयुक्त है। इसी प्रकार अन्य स्वरो से युक्त शब्दो का पाख्यान करते समय वे गाथा के पहले की एक पक्ति मे 'अथ' इकारादय , उकारादय एकारादय आदि कहकर निर्दिष्ट कर देते हैं । ' एकार्थक और अनेकार्थक शब्दो का प्रत्याख्यान करने के पहले भी वे 'इत्येकार्या' अथ अनेकार्था आदि कहकर निर्दिष्ट करते चलते हैं । स्वर वर्ग की भाति ही व्यजन वर्गों मे भी पहले ह यक्षर फिर व्यक्षर, चतुरक्षर आदि शब्द क्रम से प्रत्याख्यायित किये गये हैं । इस प्रकार 'देशी' शब्दो और उनके पर्यायवाची 'तद्भव' शब्दो का प्रत्याख्यान करने वाली 'देशीनाममाला' की मुलपाठ से सम्बन्धित गाथाए स्वरूप की दृष्टि से कहीं भी दुरुह नही हैं । कदमकदम पर आचार्य दुरूहतायो को मिटाने के लिए सकेत देते चलते हैं । गाथाओ के स्वरूप का निर्धारण हो जाने के बाद प्रत्येक वर्ग में निहित गाथारो की संख्या का उल्लेख कर देना भी समीचीन होगा। इसे अग्र प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है
वर्णो मे निहित स्वरो का निर्देश करने के अतिरिक्त कोशकार नये व्यजन से प्रारम्भ होने वाले शब्दो का निर्देश करने में भी नहीं चूकते। च से प्रारम्भ होने वाले शब्दो का प्रत्याख्यान हो जाने पर छ से प्रारम्भ होने वाले वर्णों की शुरुआत करने के पहले वे लिख देते हैं-'अथद्वादय' यही परिपाटी उन्होंने पूरे ग्रन्य मे अपनायी है।