________________
53 एक्स (X) प्रति
मूल पाठ और टीका सहित सुस्पष्ट अक्षरो मे लिखी हुई यह एक अपूर्ण मूल प्रति है। इसमे दी गई सख्या 856 (1886-92) है। पत्रो की उल्लिखित सख्या 45 है परन्तु 14 और 15 एक ही पृष्ठ पर लिख जाने के कारण इसकी वास्तविक पृष्ठ सख्या 44 ही ठहरती है। इसका प्रतिलिपि कार जैन लिपि का अभ्यस्त नही मालूम पडता प्रत उसने भूलें तो की ही है साथ ही विना कुछ लिखे ही खाली स्थान छोड दिया है। इसमे कोई तिथि नही दी गयी है। कुछ ऐसी गिनतिया लिखी गयी है जो अत्यन्त अस्पष्ट और सर्वथा अबोध्य है - जैसे अन्त मे-भा 1, पृ 19 (यह लिखकर काट दिया गया है फिर प्र० 19 (?) लिख दिया गया है । यह प्रति प्रथम सस्करण की सी (C) प्रति से निकटतम रूप से सम्बन्धित है । वाई (Y) प्रति
यह सम्पूर्ण मूलपाठ से युक्त है । टीका नही है । इसमे दी गयी सख्या 397, (1895-98) है • पृष्ठो की सख्या 21 है । यह बहुत सावधानी से लिखी गयी है, अत. भूलें कम हैं । कही-कही प्रतिलिपिकार च, व और व, उ और प्रो, च्छ तथा त्थ के पढने मे प्रमाद अवश्य कर गया है फिर भी सामान्य रूप से शब्दो का पाख्यान शुद्ध रूप से किया गया है । इसके हासिये मे कुछ टिप्पणिया दी हुई है जो प्राय देशी शब्दो का सस्कृत मे अर्थ द्योतित करती है। इसमे दी गयी तिथि सस्वत् 1636 शुक्र, फाल्गुन शुक्लपक्ष 5 मी है । यह प्रति जिनचन्द्र सूरि के शिष्य पडितरत्न निधान गरिण के द्वारा लिखी गयी थी। इस मूल प्रति का सम्बन्ध प्रथम सस्करण में प्रयुक्त वी (B) और एफ (F) प्रतियो से है । जेड (Z) प्रति
यह एक मूलपाठ और टीका सहित प्रति है। इस पर दी गयी सख्या 438, __ 1882-83 है। इसकी पृष्ठ सख्या साठ (60) है। परन्तु यह अपूर्ण प्रति है।
अष्टम वर्ग की 12वी गाथा के 'साउलिन' शब्द के बाद यह समाप्त हो जाती है। __40वे पृष्ठ से लेकर प्रत्येक पन्ने का दाहिना भाग चूहो द्वारा खा डाला गया है।
यह एक सुस्पष्ट वर्णो मे लिखी गयी प्रति है और बहुत कुछ प्रथम सस्करण मे उल्लिखित जी (G) प्रति से मिलती जुलती प्रति है । अन्तिम पृष्ठो के खो जाने से इसकी तिथि का कुछ भी पता नही चलता । यह प्रति लगभग दो सौ वर्ष पुरानी है । इसका लिपिकार भी जैनलिपियो के पढने मे अभ्यस्त नही लगता क्योकि इस प्रति मे भी जैनलिपियो के पढने मे वही अशुद्धिया की गयी हैं जिनका पहले उल्लेख किया जा चुका है।