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________________ । 45 की अधिक सम्भावना रहती है । प्रत पुष्पिका मे पाया हुआ यह नाम हो सकता है प्रतिलिपिकारो के द्वारा लिखा गया हो। दुसरे प्राचार्य हेमचन्द्र जैसा प्रसिद्ध भाषाविद् उस प्रकार के विवादास्पद नामो से सावधान भी रहेगा । अब इस नाम से उत्पन्न होने वाले भ्रमो का विवेचन कर लेना भी समीचन होगा। ___ व्याकरण शास्त्र के अन्तर्गन भाषा में प्रयुक्त होने वाले शब्दो के चार विभाग किये गये हैं (1) नाम (सना), (2) प्रात्यात (क्रिया), (3) निपात (4) अव्यय । इस विभाजन को ध्यान में रखकर यदि हम उपर्युक्त ग्रन्थ के नामकरण पर विचार करें तो उसे केवल नाम (संज्ञा) पदो का ही कोश होना चाहिए । परन्तु ग्रन्थ मे विवेचित शब्दो को देखने से पता चलता है कि इसमे अनेको पाख्यात पद भी आये हैं । अत सिद्धान्तत यह नामकरण भ्रम पैदा करने वाला है। प्राचार्य हेमचन्द्र इन आपत्तियो मे परिचित थे श्रत उन्होने पूरे ग्रन्थ मे कही भी यह नाम नहीं दिया । उनके द्वारा दिये गये दोनो नाम ग्रन्थ का म्वरूप स्पष्ट रूप से सकेतित करते हैं । अव देखना यह है कि "पूप्पिका" मे ग्रन्थ कार से अलग हटकर नया नाम क्यो दिया गया ? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए हमे हेमचन्द्र के पहले के कोश साहित्य की पोर दृष्टिपात करना होगा । प्राचार्य हेमचन्द्र ने अपने इस कोश ग्रन्थ मे कई देशी कोश के निर्मातायो का उल्लेख किया है । इन्ही मे धनपाल भी एक हैं। इनका एक अन्य पाइग्रलच्छी" या "पाइपलच्छीनाममाला" के नाम से प्रसिद्ध है । इस ग्रन्थ की रचना विस० 1029 (972 ई ) मे धारा नगरी मे हुई। प्रारम्भ मे ही ग्रन्थकार बताता है कि उसने इस ग्रन्य की रचना अपनी छोटी "बहिन" "अवन्ति सुन्दरी' को शब्द ज्ञान कराने के लिए की है । ग्रन्थ के प्रथम श्लोक मे ही उसने इसे 'नाममाला' कहकर सम्बोधित किया है । 278वे श्लोक मे वह इसे 'देसी' भी बताता है परन्तु इममे केवल एक चौथाई ही देशी शब्द है । धनपाल की इस 'पाइअलच्छी नाममाला' से हेमचन्द्र की 'रयणावली' के प्रतिलिपिकार अवश्य ही परिचित रहे होगे । जिस प्रकार धनपाल ने अपने प्राकृत शब्दो के सकलन ग्रन्थ को 'नाममाला' कहा उसी प्रकार मम्भवत 'रयणावली' के प्रतिलिपिकारो ने भी देशी शब्दो के इस सकलन ग्रन्थ को 'देशीनाममाला' नाम दे दिया होगा । उनका ध्यान परम्परा मे प्रचलित शव्द पर अधिक गया होगा । इस शब्द (नाम) के व्याकरणलम्य अर्थ को उन्होने व्यान में न रखा होगा। इस प्रकार 'देशीनाममाला' नामकरण में प्रयुक्त 'नाम' आरम्भ मे यह पुस्तक वेर्गर्स वाइ चेने त्सूर कण्डे डेर इण्डोगर्मानिशन् स्प्राखन 4,20 से 166 ए तक मे प्रकाशित हुई थी। इसके बाद गोएटिंगन से 1878 मे पुस्तक रूप में छपी। बाद मे गिओर्ग वूलर ने आलोचनात्मक टिप्पणी सहित प्रकाशित किया।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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