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46 ] शब्द 'सजापद' मात्र का वाचक न होकर 'शब्द' मात्र के वाचक नामकरण मे भी ग्रहण किया गया है । यह बात परवर्ती कोशो के नामकरण मे भी देखी जा सकती है । 'नाममाला' पद आगे चलकर 'शब्दकोश' का वाचक भी बन गया।
इस नामकरण के समर्थन मे दूसरा तर्क यह भी दिया जाता है कि कोश- . ग्रन्यो मे चू कि सनापद अधिक सकलित होते हैं अत उनकी प्रधानता के आधार पर यह नामकरण किया गया होगा-'प्राधान्येनन्यपदेशा भवन्ति ।'
डा० पिशेल' और मुरलीवर वनर्जी प्रस्तुत ग्रन्य का 'देशीनाममाला' नाम अधिक उचित मानते हैं । अत इन दोनो विद्वानो ने अपने द्वारा सम्पादित अन्य का नाम 'देशीनाममाला' ही रखना उचित समझा है । इन विद्वानो का मत है कि यह नाम अत्यधिक स्पष्ट और क्षेत्र विस्तार मे 'देशीशब्दसग्रह' से कही अधिक है । 'देशीशब्दमग्रह' में आया हुया 'शब्द' पद 'नाम' और 'धातु' दोनो का समाहार कर लेता है जवकि प्राचार्य हेमचन्द्र ‘घातु' पदो को इस कोश के अन्तर्गत नही ग्रहण करते । प्रथम वर्ग की तृतीय गाथा (कारिका) की सस्कृन व्याख्या मे वे लिखते हैं' .... . .। ये तु वज्जर-पज्जर-उप्काल पिसुण-सघ-बोल्लः चव जप-सीसमाहादय कय्यादीनामादेशत्वेन साबितास् (सिद्ध हेमचन्द्र 4,2) तेऽन्येर्देशीपु परिगृहीताप्रप्यस्माभिर्न निबद्धा ।
उपर्युक्त मतो का यदि एकत्र समाहार किया जाये तो अद्भुत विरोधाभास दिखायी पडता है। यदि हेमचन्द्र को इन ग्रन्य ने 'पाख्यात' पदो को बाहर ही रखना या तो उन्होंने इसके नाम में 'शब्द' पद का प्रयोग क्यो किया? दूसरी ओर यदि 'देशीनाममाला' नामकरण सार्यक है तो इसके अन्तर्गत आये हए 'पाण्यातपद' कहा जायेगे ? दोनो ही मितियां अपनी जगह महत्त्वपूर्ण है । ऐमी दशा मे किमी मध्यम मार्ग का ही महारा लेना उत्रित होगा। प्राचार्य द्वारा किया गया नामकरण विवाद ग्रस्त होते हुए भी पार्षप्रयोग' वी ग्राड में छिपाया जा सकता है। दूसरी ओर 'देशीनाममाला' नामकरण की प्रमिद्धि और कई मूलप्रतियो पर मका पाया जाना पना प्रौचित्य को निद करता है । परन्तु यदि ध्यानपूर्वक देखा जाय तो प्राचार्य
1. द्विारा मयादित और बायेमात मी गे प्रशनित दगीनामाला। 2 सनीपुर चनजींदारामपानिनादनिमिटी प्रेमप्रमाणिन देगीनाममाता। 3. जीन माना-दाग मपादित पिगेन | 3 स्यामा प03।। 4 "I have called the work देशोनाममाता properly it ought to have
been called 77ir7 as this is the name given to the work by Hemchundra himself (VII 77) 777777' It is tcrined in best MISS of the AE and in the maigin of the single plios of H
(Contd)