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करता है । इसके अन्तर्गत श्रव्य और दृश्य काव्य का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया गया है । इस प्रकार "काव्यानुशासन" सस्कृत काव्यशास्त्र की सरल, सुवोध व्याख्या प्रस्तुत करने मे अत्यन्त सफल है । (8) छन्दोऽनुशासन
इस अन्य मे सस्कृत प्राकृत एव अपभ्र श साहित्य के छन्दो का सुष्ठ निरूपण किया गया है । मूल ग्रन्थ सूत्रो मे है । हेमचन्द्र ने स्वय ही इसकी व्याख्या भी लिखी है । छन्दो का उदाहरण इन्होंने अपनी मौलिक रचनायो द्वारा दिया है। (9) प्रमारणमीमासा
यह प्रमेय और प्रमाण का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करने वाला न्यायशास्त्र का ग्रन्य है । अनेकान्तवाद, पारमार्थिक प्रत्यक्ष की तात्विकता, इन्द्रियज्ञान का व्यापारक्रम, परोक्ष के प्रकार, निग्रह स्यान या जय-पराजय-व्यवस्था, प्रमेय प्रमाता का स्वरूप एव मर्वज्ञत्व का समर्थन आदि विषयो पर विचार किया गया है । (10) विष्टि शलाका पुरुप चरित
यह ग्रन्थ पुराण और काव्य-कला का एकत्र समन्वय है । इममे जैन धर्म के 24 तीर्थ करो 12 चक्रवर्ती, 9 नारायगा, 9 प्रतिनारायण तथा 9 वलदेव कुल 63 व्यक्तियो के चरित का वर्णन है । यह ग्रन्य प्राचीन भारतीय इतिहास की गवेपणा मे अत्यन्त महायक ग्रन्थ है। (11) योगशास्त्र एवं स्तोत्र
यह पातजन्नयोगभाष्य के समान जैन शब्दावली में लिखा गया उच्चकोटि का योगशास्त्रीय ग्रन्य है । शैली में पतजलि का अनुकरण होते हुए भी विषय गौर उसके वर्णन क्रम में मौलिकता है । चीतराग, महावीर स्तोत्र और स्तोत्र द्वात्रिशिका हेमचद्र के उच्चकोटि के स्तोत्र-ग्रन्य हैं । प्राचार्य हेमचन्द्र की रचनाप्रो का तियिफ्रम
प्राचार्य हेमचन्द्र ने अपनी रचनायो के प्रम का निर्देश करते हुए भी किसी भी रचना की कोई निश्चित तिथि नही दी। प्राचार्य हेमचन्द्र के जीवन से सवधित पटनाग्रो का उल्लेख करने वाले किमी उनके अन्य समकालीन ग्रन्थ मे भी उनकी रचनायो में तिथि निर्णय पर विचार नहीं किया गया। डा० वूलर ने हेमचन्द्र को
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