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________________ 35 प्रथम अध्याय मे 25 सूत्र, द्वितीय मे 59, तृतीय में 10, चतुर्थ मे 9, पचम में 9, पष्ठ मे 31, सप्तम मे 52 और अष्टम मे 13 सूत्र हैं । इन सीमित 208 सूत्रो मे ही प्राचार्य हेमचन्द्र ने समस्त सस्कृत काव्यशास्त्र का सुस्पष्ट विवेचन प्रस्तुत कर दिया है । इन छोटे छोटे सूत्रो का विस्त' र अलकार चूडामरिण नामक वृत्ति मे भलीभाति प्राप्त हो जाता है । इस अलकार "चूडामणि" नामक वृत्ति का भी विस्तार ग्रन्थकार ने "विवेक" नामक टीका के रूप से किया है । हेमचन्द्र स्वय ही वृत्ति को "प्रतन्नयते" (Extended) और ट का (विवेक) को “प्रवितन्यते" (Extended in detail) कहकर स्पष्ट कर देते है । विवेक टीका की रचना उन्होने दुरूह स्थलो की व्याख्या और नवीन तथ्यो के सकेत के लिए की और इस कार्य मे वे बहुत कुछ सफल भी है । समस्त काव्यानुशासन मे दिये गये उद्धरणो की सख्या 16321 है । सस्कृत का व्यशास्त्र के इतिहास की दृष्टि से भी यह कृति बहुत महत्त्वपूर्ण है। पूरे ग्रन्थ मे हेमचन्द्र ने 50 के लगभग ग्रन्थकारो और लगभग 81 ग्रन्थो की सूचना दी है ।इसके अतिरिक्त कुछ उद्धरण ऐसे भी हैं जिनके मूल ग्रन्थ और ग्रन्थकार का नाम नहीं प्राप्त होता । इन ग्रन्थो और ग्रन्थकारो तथा विभिन्न उद्धरणो से सम्बन्धित सूचनाए डा पारिख ने काव्यानुशासन पृ 521-526 से दे दी हैं । विषय वस्तु-प्रथम अध्याय के प्रथम सूत्र मे मागलिक नमस्कार के बाद द्वितीय सूत्र मे हेमचन्द्र अपने इस ग्रन्थ का प्रयोजन बताते हैं । तृतीय सूत्र कविता के उद्देश्य का आख्यान प्रस्तुत करता है-काव्य का उद्देश्य है आनन्द, यश, और कान्तातुल्य उपदेश । चौथे सूत्र मे काव्य का कारण प्रतिभा बताया गया है। 5वे और छठे सूत्र मे "प्रतिभा" की जैन धर्म सम्मत व्याख्या प्रस्तुत की गयी है। 11वा सूत्र काव्य-प्रकृति का निर्णायक है । काव्यानुशासन का द्वितीय अध्याय रम, भाव, रसाभास और भावाभास तथा काव्य कोटियो के निर्धारण से सम्बन्धित है । तृतीय अध्याय के दस सूत्रो मे काव्यदोपो का विवेचन है । चतुर्थ अध्याय काव्य-गुणो का पाख्यान प्रस्तुत करता है । पाचवा अध्याय छ शब्दालकारो से सम्बन्धित है । छठे अध्याय मे इक्कीस अर्थालकारो का विवेचन है। इसमे कुछ अलकारो की परिभाषा अत्यन्त मनोरम एव विशिष्ट है । जैसे उपमा की "हृद्यम् साधर्म्यम् उपमा ।" सातवा अध्याय काव्यगत चरित्रो का विवेचन प्रस्तुत करता है-जैसे नायक प्रतिनायक, नायिका आदि । आठवा अध्याय प्रवन्धात्मक काव्य भेदो का उपस्थापन 1 काव्यानुशासन-भूमिका, पृ0 सी0 सी0 सी0 15 (315)
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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