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38 ] दी । प्रकारान्तर से यह कहा जा सकता है कि प्राचार्य हेमचन्द्र की सफलता का बहुत कुछ श्रेय सिद्धराज की “अभ्यर्थना" और उसके द्वारा दी गई सुविधाप्रो को है । गुजरात के प्रो रामनारायण पाठक नामक एक कवि ने अपनी "रणकदेवी" नामक कविता में कहा है
हमप्रदीपप्रगटावी सरस्वतीनो मार्थक्यकी निज नामनु सिद्धराजे ।। सरस्वती का हेम रूपी प्रदीप जलाकर सिद्धराज ने अपने नाम को सार्थक कर दिया। (6) हयाश्रयकाव्य ।
हेमचन्द्र कृत द्यायय काय 20 मगों में विभाजित है । इसके अन्तिम पाच सर्ग "प्राकृत याश्रय काव्य" या कुमारपाल का विवरण प्रस्तुत करने के कारण "कुमारपाल चरित" के नाम से अभिहित किये जाते हैं। पूरा ग्रन्थ एक महाकाव्य होने के साथ ही हेमशब्दानुशासन मे अ.ये हुए व्याकरणिक सूत्रो की व्याख्या भी प्रस्तुत करता है । इस काव्य की रचना शब्दानुशासन की रचना समाप्त हो जाने के बाद शुरू हुई होगी । काव्य के तेरह मन कुमारपाल के शासन के पहले के है । 34वा सर्ग कुमारपाल के राज्यकाल के प्रारम्भिक भाग में लिखा गया लगता है । शेप सर्ग तो निश्चित रूप से कुमारपाल के ही राज्यकाल में लिखे गये ।
___ यह काव्य अपहिल्लपुर के चालुक्यवशी राजापो का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है । इसका विवरण ऐतिहासिक तथ्यो पर निर्धारित होने के कारण मा य भी है । जिन प्रकार अन्त के पात्र मों में कुमारपाल का वर्णन होने के कारण उन्हे "कुमारपाल चरित" सना दी गयी है उसी प्रकार पूरे काव्य को चालुक्यवशी राजामो का विवरण प्रस्तुत करने के कारण 'चालुक्यवशोत्कीर्तन" नाम भी दिया गया है। (7) पाटयानुशासन :
यह काव्यागो का विवेचन प्रन्दन करने वाला मम्मट के काव्य प्रकाश की परम्पग मे लिया गया अलकार शास्त्र का ग्रन्थ है। हेमचन्द्र ने न्वय ही सूत्र, अलकार चूटामगि नाम की वृत्ति और विवेक नाम की टीका भी लिखी है । इसमे मम्मट की अपेक्षा काव्य के प्रयोजन हेतु अर्यालकार गुण, दोप ध्वनि आदि सिद्धान्तो का हेमचन्द्र ने विस्तार से विवेचन क्यिा है।
काव्यानुशानन मे कुल पाठ अध्याय और 208 सूत्र हैं । अध्याय क्रम से मूरों को संन्या इस प्रकार है