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इन महत्त्वपूर्ण रचनायो के अतिरिक्त अनेको छोटी-छोटी रचनायो का उरलेस भी प्राप्त हो जाता है। विपय की दृष्टि मे प्राचार्य की रचनाए अत्यन्त विस्तृत और विविधता लिये हुए हैं। सिद्धहैमशब्दानुशासन
___ "सिद्धहेमशब्दानुशासन' की रचना के कारणो पर विस्तार से प्रकाश डाला जा चुका है। अब तक प्राप्त प्रमाणो के आधार पर यह प्राचार्य हेमचन्द्र की प्रथम रचना है । इस ग्रन्थ की रचना एक वर्ष के अन्दर हुई थी । ऐसा उल्लेख प्रभावक चरित में आता है । परन्तु यह मर्वधा असम्भव मा लगता । हा इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इसकी रचना सिद्धराज की मृत्यु अर्थात् वि स 1199 या 1143 ई के पहले हो चुकी थी। सिद्धहमशब्दानुसान का स्वरूप
सिद्धहेमशब्दानुशासन के कुल पाच भाग हैं
(1) सूत्र, (2) गण पाठ (3) धातु पाठ (4) उणादि सूत्र (5) लिंगानुशासन । परम्परा मे जितने भी व्याकरण ग्रन्थ लिखे गये थे, उनमे सूत्र किसी के द्वारा लिखा गया, तो वृत्ति किसी अन्य ने लिखी । गण पाठ, उणादि सूत्र, लिङ्गानुशासन आदि भी भिन्न-भिन्न व्यक्तियो द्वारा प्रणीत हुए, परन्तु सिद्धहेम व्याकरण के ये सारे भाग एक व्यक्ति की रचना है । यह एक विशेष उल्लेखनीय बात है। इतना ही नही प्राचार्य हेमचन्द्र ने अपने द्वारा रचे गये सूत्रो पर लघु तथा वृहद्वृत्तिया भी स्वय ही लिखी । इस प्रकार संस्कृत के विभिन्न वैयाकरणो, पाणिनि, मट्टोजिदीक्षित और भट्टि का कार्य अकेले ही हेमचन्द्र ने सम्पादित किया । इस शब्दानुशासन की महत्ता एक बात मे और भी है कि इसमे सस्कृत व्याकरण के साथ ही प्राकृत का भी व्याकरण समाहित है । इसके प्रारम्भ के सात अध्याय सस्कृत व्याकरण से सम्बन्धित हैं । अन्तिम पाठवा अध्याय प्राकृत व्याकरण का आख्यान करता है । इस ग्रन्य के पूरक रूप मे धातु पाठ, गणपाठ, उणादिसूत्र और लिङ्गानुशासन का आख्यान कर देने के बाद भी प्राचार्य को सतोष नही हुा । उन्होने तत्कालीन राजामो जयसिंह और कुमारपाल के चरित को लेकर एक अद्भुत ग्रन्थ " याश्रय काव्य' की भी रचना की । जिसके शुरू के अध्याय चालुक्य वशीय राजाओ की कीर्ति का ख्यापन करने के साथ ही सस्कृत शब्दानुशासन के सूत्रो की व्याख्या
1. देखें प्रस्तुत प्रवध के इसी अध्याय का सिद्धराज जयसिंह आचार्य हेमचन्द्र" प्रसग । 2. आचार्य हेमचन्द्र की रचनाओ का तिथिक्रम निर्धारण आगे किया जायेगा।