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[ 35 भी प्रस्तुत करते है । अन्तिम जिसे "प्राकृत ह याश्रय काव्य" कहा जाता है-कुमारपाल से सम्बन्धित है । इसमे प्राकृत व्याकरण से सम्बन्धित सूत्रो की व्याख्या प्रस्तुत करने के साथ ही कुमारपाल का यश भी वणित है । सस्कृत और प्राकृत व्याकरण की रचना के बाद प्राचार्य ने अपभ्र श व्याकरण की भी रचना की। अपभ्र श भापा की दुरूहताग्रो को समझाने के लिए प्राचार्य ने जो अपभ्र श की गाथाए' सयोजित की हैं । वे उनकी अद्भुत प्रतिभा का दिग्दर्शन कराने के लिए काफी हैं । इस प्रकार प्राचार्य हेमचन्द्र ने व्याकरण सम्बन्धी कमियो को दूर करते हुए एक ही अन्य मे सव कुछ देकर सस्कृत और उससे नि सृत भाषामो के व्याख्यान मे अभूतपूर्व योग दिया ।
सिद्धहैमशब्दानुशासन मे कुल पाठ अध्याय हैं । प्रत्येक अध्याय चार चार पादो मे विभाजित है । इसमे कुल 4685 सूत्र है । इनमे 3 566 सूत्र सस्कृत व्याकरण से तथा 1119 सूत्र प्राकृत भापा के व्याकरण से सम्बन्धित हैं। इन सूत्रो पर प्राचार्य ने लधुवृत्ति और वृहद्वृत्ति नाम की दो वृत्तिया (व्याख्याए या टीकाए) भी लिखी है । घातुपारायण उणादि तथा लिङ्गानुशासन (वृहट्टीका सहित) वृत्तियो सहित इस ग्रन्थ के पूरक भाग है ।
डा० पारिख ने उसी ग्रन्थ पर लिखे गये एक "वृहत्र्यास" नामक ग्रन्थ की भी सूचना दी है जिसका थोडा सा भाग प भगवानदास दोषी द्वारा खोज कर सम्पादित भी किया गया है । परम्परा मे चलने वाली चर्चाओ के आधार पर यह ग्रन्थ 84000 श्लोक प्रमाण था। इसके प्राप्त भाग को देखकर यह बात सत्य भी प्रतीत होती है । इस ग्रन्थ का निर्माण बहुत कुछ पतजलि के महाभाष्य के अनुरूप किया गया लगता है।
सिद्धहैमशब्दानुशासन के अत्यन्त विस्तत बाह्यरूप का विवेचन हो जाने के बाद इसके प्रान्तरिक रूप का प्रतिपादन भी असगत न होगा । यदि हम इस व्याकरण के निर्माण के उद्देश्य की ओर देखे तो हमे पता चलता है कि प्राचार्य हेमचन्द्र ने पठनीय व्याकरण की दुरूहताओ से बचने के लिए इस ,व्याकरण की रचना की है। इस वात को उन्होने सिद्धहैम के प्रथम अध्याय मे प्रथम पाद के तृतीय सूत्र "लोकात"3 मे स्पष्ट की। उन्हे व्याकरण शास्त्र के लिए लौकिक व्यवहार की उपयोगिता अभीष्ट है । इसी प्रकार सधिप्रकरण-समास प्रकरण तथा सज्ञानो आदि के प्रकरणो मे उनकी कुछ निजी उपलब्धिया हैं । पाणिनि द्वारा प्रणीत अष्टाध्यायी
1 अपभ्र श व्याकरण मे उदाहरण के के रूप मे आये हुए दोहे आचार्य कृत नही हैं।
ऐसा विद्वानो का मत है। 2 काव्यानुशासन-भूमिका, 40 सी0 सी0 एक्स0 सी0 3 3 सि0 है0-11113