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इनके द्वारा प्रणीत असख्य ग्रन्थो का उल्लेख करती है । कही-कही तो इन्हे लगभग साढे तीन करोड एलोको का निर्माता बताया गया है । परन्तु हेमचन्द्र के नाम से मिलने वाली ऐसी रचनाओ मे अनेको सदिग्ध है । अब तक की खोजो के आधार पर उनके जितने प्रामाणिक ग्रन्थ सामने आये हैं उन्हे देखकर यह कहना पडता है कि सचमुच वे "कलिकाल सर्वज्ञ" थे । उनकी विविध ज्ञान-विज्ञान तथा साहित्य और कला आदि से सम्बन्धित रचनायो को देखकर आश्चर्य चकित रह जाना पडता है । एक ही व्यक्ति द्वारा इतने सारे ग्रन्थो का निर्माण वह भी अत्यधिक विस्तार से भारतीय साहित्य परम्परा के लिए एक नयी बात थी।
"त्रिषष्टिशलाका पुरुपचरित" की प्रशस्ति मे प्राचार्य हेमचन्द्र अपनी प्रमुख रचनाओ का उल्लेख स्वय करते हैं । वहा कुमारपाल हेमचन्द्र के द्वारा दी गई आज्ञायो का पालन करने के बाद आकर आचार्य को उनका आदेश पूरा हो जाने की सूचना देने के बाद उनके द्वारा सिद्धराज जयसिंह के राज्यकाल मे तथा स्वय अपने राज्यकाल मे रचे गये ग्रन्थो की सूचना देने के बाद आचार्य से जैन तीर्थडुरो के जीवन से सम्बन्धित एक लोकहितकारी ग्रन्थ के निर्माण की प्रार्थना करता है । उसकी प्रार्थना के अनुसार हेमचन्द्र ने 63 महापुरुषो की जीवन कथाओ का समाहार त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित मे किया । इस विवरण के आधार पर हेमचन्द्र के सात ग्रन्थो का उल्लेख इस प्रकार है -
(1) सिद्धहैमशब्दानुशासन-उसकी वृनि तथा व्याख्या भी। (2) योग शास्त्र । (3) दयाश्रय काव्य । (4) छन्दोऽनुशासन । (5) काव्यानुशासन । (6) नाम सग्रह-इनमे अभिधानचिन्तामणि-देशीनाममाला इत्यादि कोष
ग्रन्थ आते हैं। (7) त्रिषष्टिशलाका पुरुपचरित । ये रचनाए कालक्रम से वरिणत नही हैं ।
"कुमारपालप्रतिबोध" के रचयिता सोमप्रभसूरि और "मोहराजपराजय" नाटक के रचयिता यशपाल की सूचनाओ के आधार पर हेमचन्द्र की तीन अन्य कृतिया भी प्राप्त होती हैं
(8) वीतराग स्तुति । (9) द्वात्रिंशिका । (स्तोत्र) (10) प्रमाण मीमासा।