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________________ 298 ] उन्हें कर्ज प्रादि देकर बांध रखने की परम्परा भारतीय आर्य समाज में भी अप्राप्य घटना नहीं है। ऐसी स्थिति में इस शब्द को भी तद्भव माना जाना चाहिए, विदेशी नहीं । 4 परक (दे ना 6-8)-अल्प श्रोत -छोटी नदी, फारसी परक-एक नदी का नाम । "व्यक्तिवाचक मना जातिवाचक मजार्थ प्रयुक्त होती है । जैसे सत्कृत गाण्डीव (अजुन वा धनुप) फारमी में गाण्डीव स मान्य धनुषवाची शब्द है । गगा शब्द नदीवाची रहा है।" कारमी-मापी घागरियो के माध्यम से यह शब्द जन जीवन मे थोडे ग्रयं परिवर्तन के साथ प्रचलित रहा होगा । आचार्य हमचन्द्र ने इस प्राक्त शब्द समझ कर संकलित कर लिया होगा। 5 बोबडो (दे ना 6-96)-छाग -बकरा फारमी के माध्यम से प्राप्त मून अरबी श द बकर-वैल, हिबू में बकर पशु (प्राकृतानुल्प ध्वनिविकार-प्रकार यो ग्रोकार जमे पदम को पोम्म, र का मे परिवर्तन) म छाया वोल्कर । रामानजम्वामी, तदभव मान म. के "वर्कर" शब्द से व्युत्पन्न करते हैं। परन्तु सम्मत में 'वि' पीर 'प्रजा' जैसे शब्द इस अर्थ में प्रयुक्त होते रहे है । प्रत यह गन्द प्रवी का ही ह ना चाहिए । 6 जया (दे ना 3-40) हा मनाह ~जीन, पारमी-जीन, पहलवीजीन, जद-नि, म न छापा जबरम् । श्री गमानुजस्वामी इस शब्द को तद्भव मानते है। प्रान में यह शब्द मम्कन के ही माध्यम ने पाया होगा । जन्द मे जइनि प्रम में जवन शन्दा नाय लार मिलना, दीनो को किसी अन्य सयुक्त मापा में, गरदन। वह पानी की मसमय की नापा का शब्द माना जाना चाहिए जा दोनो गाव माय रहने पर बोलते रहे होगे । प्राचार्य हेमचन्द्र द्वारा मलित यह - 'नयनम् गम्दाही नाकाम में व्यवहृत रम्प होगा ।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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