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________________ [ 299 की यह परिपाटी विल्कुल ही कामचलाऊ है। देशीनाममाला के हजारों शब्दो को 'देश्य' मान लेने मे यापत्ति नहीं है, तो फिर एक शब्द को खीचतान कर विदेशी भापा तक ले जाने का मोह कितना भ्रामक है। मेरी दृष्टि मे यह शब्द पूर्णतया 'देवी' है और भारतीय ग्रार्य-मापा का है । परन्तु ग्रियर्सन जैसे विद्वान् की हा मे हा मिलाने के कारण सभी विद्वानो ने इसे विदेशी शब्द मान लिया है । दे ना मा के कुछ ऐसे ही शब्द है, जिन्हे विद्वानो ने विदेशो शब्द सम्पत्ति से सम्बन्धिन बनाया है। जहा तक हेमचन्द्र के दृष्टिकोण का प्रश्न है, वे इन शब्दो के विदेशी होने की स्थिति से बिल्कुल अनभिज्ञ है । उन्होने लोक-भापायो मे प्रचलित देखकर ही इन्हे समलित कर दिया होगा । सस्कृत मे पारसियो के माध्यम से कितने ही शब्द भारत आ गये है, परन्तु इसमे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि ये शब्द विदेगी हो गये । इसके विपरीत स्वय ईरानी पार्यशाखा की भापाए -भारतीय प्रार्य भाषाग्रो मे बहुत अधिक प्रभावित है । वहत प्राचीनकाल से ही भारत के आर्य, ईरान जाकर उन्हे अपनी शासनपटुता से प्रभावित करते रहे है। इतिहासकार स्मिथ का विचार है कि पल्हव दूसरी शताब्दी मे भारत के पश्चिमी भाग मे विजेता बनकर फारम मे पा गये थे। 641 ई० मे फारसी वश के समाप्त हो जाने पर जरथन के उपासक भारत मे या बसे, जो आज भी पारसी कहलाते है । जरथुस्र के इन उपामको मे अधिकाश भारतीय प्रार्यवशज ही हैं । ऐसी स्थिति मे, भारतीय प्रार्यमापा की इतनी प्राचीन परम्परा मे देशी शब्दो की व्युत्पत्ति न खोजकर, विदेशी भापाग्रो मे जाना उपयुक्त नहीं है । (5) ध्वन्यनुकरणात्मक शब्द प्रारम्भ से ही मनुष्य अनुकरणशील प्राणी रहा है। वह पशुपक्षियो की अव्यक्त ध्वनिया सुनता है, अन्य वस्तुप्रो के गिरने, हिलने-डुलने आदि से उत्पन्न आवाजे, सुनता है और भावावेश मे श्राकर स्वय या अन्य द्वारा विहित भावाभिव्यजक विभिन्न नादो को कर्ण गोचर करता है । वह इन सभी का अनुकरण करता है । इसी अनुकरण की प्रवृत्ति के कारण भापा मे अनेक शतुप्रकृतिया, नाम और विस्मयादिवोधक शब्द, व्यवहृत होने लगते है । दे ना की शब्दावली मे इस कोटि के शब्द भी पर्याप्त मात्रा में है। इस कोश की शब्दावली का सम्बन्ध लोकजीवन से है, प्रत ध्वन्यनुकरणात्मक शब्दो का मिलना अतिस्वाभाविक है । दे ना मे आये हुए ध्वन्यनुकरणात्मक शब्दो का विवरण इस प्रकार है(1) लोकोद्भूत ध्वन्यनुकरणात्मक शब्द -जैसे - खम्मक्खमो-सग्राम , खिक्खिरी डोम के हाथ मे रहने वाली फटे वास की छडी (खिर खिर शब्द करने के कारण), खुट्ट-त्रुटितम् (किसी वस्तु के टूटने
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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