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________________ [ 297 के एक वजीर ने व्यापारिक कार्यों को सुचारु रूप से चलाने के लिए फारसी लिपि प्रचलित की और उसके सहारे व्यापारिक फारसी शब्द भी चल पडे । हेमचन्द्र के समय तक अनेको अरबी-फारसी के शब्द सामान्य जनभापात्रो मे घुलमिल चुके थे । सम्भवतः इन विदेशी शब्दो का इतना प्राकृतीकरण हो गण और तत्कालीन जनभापापो मे इतने सामान्य हो गये थे कि प्राचार्य हेमचन्द्र इन्हे पहिचान न सके होगे । प्रत. कोश मे कुछ फारसी-अरबी शब्दो का प्रा जाना अधिक प्राश्चर्यजनक नहीं । एसे कुछ शब्दो के उदाहरण यहा दिये जा रहे है 1 अगुत्थल (दे. ना 1131) - अ गुलीयम् - अगूठी। फारसी-अगु स्तरी, पहलवी - अगुस्त, जन्द-यगुम्त (स्त का वर्ण विकार त्थ है जैसे हस्त हत्थ) म छाया-प्रगुष्ठ। यहा एक तथ्य विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है । कोई एक समय था जब भारतीय और ईरानी आर्य एक ही प्रकार के भापा-भापी थे। दोनो अलग हुए तो दोनो की भाषाम्रो और सस्कृतियो मे भी अन्तर पाता गया। दोनो की भापायो मे अनेको ऐसे शब्द होगे जो अाज भी समान रूप और अर्थ वाले हैं। पारसियो का जन्द-प्रवेस्ता तो थोडे ध्वनि परिवर्तनो के साथ सस्कृत मे रूपान्तरित किया जा सकता है। ऐसी स्थिति मे अगुस्त प्रौर अ गुण्ठ शब्द दोनो एक ही स्रोत से उदभूत लगते है। जहा तक अगुत्थल शब्द के फारसी शब्द होने की सम्भावना है यह यदि अ गुस्त से निष्पन्न किया जा सकता है तो अगुष्ठ से भी निष्पन्न करने मे कोई कठिनाई नही दिखती- गुष्ठ7 अगुठ्ठ7 अगुत्थ । यह शब्द तद्भव माना जाना चाहिए-विदेशी नही । फारसी मे इसकी उपस्थिति देखकर इसे विदेशी शब्द कह देना उपयुक्त वात नही है । 2 दत्थरो (दे ना 5134)-हस्तशाटक'- रूमाल, फारसी-दस्तार7 दत्थर (जैमे-प्रस्ताव पत्थव)। यद शब्द निश्चित रूप से फारसी का होगा । जनभाषा मे यह ध्वनिविकार के साथ प्रचलित हो गया होगा । फारसी का ज्ञान न होने के कारण, ध्वनिगत विशेपनाप्रो को देखते हुए प्राचार्य हेमचन्द्र ने इसे प्राकृत की शब्द सम्पत्ति समझ लिया होगा। 3. वधो (दे ना 6-88)-मृत्य -नौकर, फारसी-बन्दह, पहलवी-बन्दक, प्राचीन फारसी-बन्दक, सस्कृत छाया-बन्धक । फारसी भाषा-भाषी समाज मे गुलाम रखने की परम्परा के वाहुल्य को देखते हुए, इस शब्द का सम्बन्ध भले ही फारसी से जोड दिया जाये पर जो स्थितिया-अगुत्थल शब्द के सम्बन्ध मे बतायी जा चुकी हैं, बहुत कुछ इस शब्द पर भी सत्य प्रतीत होती हैं। संस्कृत बन्धक शब्द फारसी के वन्दह या बन्दक से अधिक प्राचीन लगता है। फिर दासो को, भाग जाने के डर से,
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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