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296 ] नभी चुत है । प्राकृत व्याकरणाकाने के समान ही उनका भी मत है कि इन शब्दो का ।। मृत उद्गम एक गूट रहस्य है । ये अनादिकाल में देश की भापामो में व्यवहृत होने पाये हैं। इसी परम्पग में कवियों ने इन्हे अपनी रचनायो मे भी व्यवहृत स्सिा है।
द ना मा की अविकाश गन्दावली भी अनादिप्रवृत्त प्राकृत भाषा (लोकनापा) गे शब्दावली है। इसमे मिलने वाले प्राविड भाषाओं के देश्यपद हेमचन्द्रग 'देनी' शब्द विचार से सम्बन्धित मान्यताप्रो की ही पुष्टि देते हैं ।
पर द्राविड भाषा के जो शब्द संकेतित किये गये हैं, वे द्राविड व्याकरणकारों के अनुसार 'देग्य' हैं और अनादिकाल में प्रचलित देशभाषा से संबद्ध हैं। क्या उनने यह ध्वनित नहीं होना कि द्राविड भापायो के ऐसे शब्द निश्चित रूप से किसी अन्य देशनापा में लिए गए शब्द होगे । जिम तरह ये शब्द काविड भापायो मे गये मंग, उसी प्रकार प्राय मापानी में भी पा सकते हैं। इस वग के शब्द जनता की
आबकि बार-चाल की भाषा में प्रचलित रहते हैं, ये किसी एक भाषा की मनि बतार नहीं रहते। इनका प्रमार नित्य भिन्न-भिन्न भापायो मे होता रहता है। निक रूप में यह कहा जा सकता है कि दे. ना मा में प्राप्त होने वारी द्राविड भापायी की शब्दावनी भी 'देश्य' ही है। इसमे दक्षिणी भापाग्रो को समत्ति न कहकर युग युगो में प्रत्रनित देश-भापा या जन-मापा की सम्पत्ति पना परि पाना होगा। प्राचार्य हेमचन्द्र की भी यही मान्यता है, उन्होने एक
न क्षेत्र की देन्य' शब्दावली का सकलन उस कोश अन्य में किया है। यदि वे मा नापगं प्राली पोर नभी भापायी की देण्यशब्दावली का मक्लन करते दोल ने परने । यही बात उन्होंने दे. ना मा 114 मे कही है।
(4) दिगी गन्द
प्रमन गव' प्रौर जार्ज नियमन प्रति विद्वानो ने दे ना मा की रानी गरिन युट प्ररबी-फारमी के शब्दो की और मोत किया है। मन दो माहोना की. वाकाने वाली बात नहीं है । प्राचार्य हेमचन्द्र
ही मारमान व्यापारी भाग्न प्राने लगे थे। 711 ई. ने मुहम्मद of f: 7 मामा हो गया और उनके उत्तराविकारी तव तक शासन सोra-fr गनी ने उन्हें सन्नाट नही दिया। प्राग महमूद गजनवी 1 -- - -zि» 45, समाग माग 'दि योरियन एलीमेंट
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