SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 278 याब ने भी प्रत्येक शब्द की व्युत्पत्ति देने का प्रयास किया था, पर इस झोक मे वे चिनने ही शन्दी की उटपटाग व्युत्पत्तिया दे गये हैं । यही कारण है कि हेमचन्द्र समय होते हा भी देण्यपदो की व्युत्पत्ति (प्रकृति-प्रत्यय निर्धारण) के चक्कर मे नहीं । उनि लोक को प्रमाण मानकर, अनादिप्रवृत्तप्राकृत भाषा (लोकभाषा) केन्दो का अर्थनिर्धारमा मात्र कर दिया है । इस कोश के अधिकाश शब्द ध्वन्यात्मक ग्य पान्म का गठन की दृष्टि मे म मा पा का अनुगमन करते हैं, परन्तु अर्थ की दृष्टि में वे विल्गाल भिन्न प्रतीत होते है जैसे 'अम्वोच्ची'' को लीजिए-इसका अर्थ है 'पन चुनने वानी' । इनकी व्युत्पत्ति 'ग्राम्राणि उच्चिनोति' इस रूप मे सस्कृत से दी जानी है. फिर भी यह शब्द संस्कृत का नहीं है क्योकि सस्कृत मे न तो इसका प्रयोग ही प्राग्रार न व्युत्पन कर लेने पर ही इसका अर्थ 'फूतचुननेवाली' होता नरा व्युत्वनिलन्य अर्थ होगा 'ग्राम का फूत चुनने वाली' । परन्तु इस अर्थ मे, लोमा व्यवहार नही होता-प्रतः ये 'देशी' शब्द हैं। हेमचन्द्र स्वय भी कहते पदि सा अर्ग 'ग्राम का फल चुनने वाली' ही होगा तब यह देशी नहीं होगा 'यदानपुष्पाप्येवाच्चिनीति तदा न देगी।' रग प्रकार 'देशी' शब्दो का प्राचीन परिपाटी मे किया गया व्युत्पत्तिगत पवन मिती याम का नहीं मिद्ध होता । इनका केवल अर्थ की दृष्टि से किया गया प्रसनी उपयोगी होगा । नाराशप में यह कहा जा सकता है कि 'देशी' पाब्दो का मान परान या अर्थ-विज्ञान के क्षेत्र मे पटता है। व्युत्पत्ति के अन्य प्रग-वर्णागम, ला, बर्गविपर्यय, वर्णविनाश और धातु का अतिशय योग उन शब्दो अनि निकम ही हो, इनमे उन शब्दो के 'देशीपन' में कोई अन्तर नही HTTEE मात्रा मेरायटी नहीं-प्रनेको ऐमे शब्द हैं, जिन्हे सुधी विद्वानों ने मग या या फिर मम्मन मे विपत तद्भव शब्दावली का श्रग बतलाया है। ऐसे प रामरत-नापा- गही उभर कर मामने पाता है। ऐसे स्थलो पर ५ मा . या भर राने हति गम्कत व्यय प्राकृतो (लोकभापारो) की ऋणी है । Tririमदाता (लोक भाषाम्रो) की सम्पत्ति है। प्रत्येक शब्द को 1. नीट - जानेर में वे वारनविय तथ्यों को और मे ग्राख बन्द -17 AR, विद्वानी द्वारा दी जाने वाली ग्वींचतान से अच्छी तरह रोने जीनाममाला के प्रारम्न में ही यह स्पष्ट कर दिया
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy