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____ चोधीकरण
अघोष महाप्राणवणं प्राय' ह मे बदल गये हैं। इनके सघोषमहाप्राण परणों में परिवर्तित होने के उदाहरण लगभग नहीं है। सघोष महाप्राण वर्णो घ, क. ८, घ, भ की मूलस्थिति ही सर्वत्र देखी जा सकती है। म. भा पा मे इन सभी को 'ह' में परिवर्तित कर देने की प्रवृत्ति रही है। देशीनाममाला के तद्भव शब्दो में इनकी परिवर्तित स्थिति है, पर देश्य शब्दो मे ये वर्ण आदि मध्य, और अन्त्य तीनो स्थितियो मे अपने मूल रूप में विद्यमान है । इनका विस्तृत विवरण ध्यजनो की प्रवृत्ति का विवेचन करते समय दिया जा चुका है। (क) प्रघोप अल्पप्राण क, च, ट, त, प, को सघोष अल्पप्रारण ग, ज, ड, द, ब
में परिवर्तित कर देने के उदाहरण नही हैं । (स) अघोप महाप्राण स, छ, ठ, प, फ, को सोप महाप्राण थ, झ, 6, घ, भ,
मे घोषीकृत करने के उदाहरण भी नहीं हैं। इनमे ख, ष, फ को 'ह' मे
परिवर्तित करने के उदाहरण मिल जाते हैं-जैसेल- दुम्मुहो। दुर्मुख , घूमसिहा धूमशिखा, मुहल। मुखम् । थ- जहाजानो।यथाजात., पाहेज्जी पाथेयम् । फ- खन्नुहो। गुल्फ । 6. महाप्राणीकरण -
जैसे-धरूत्सर, थोयो। स्तेप या स्तोक ! ध्यंजन-सयोग
देशीनाममाला की शब्दावली मे निम्नलिखित व्यजन सयोग प्राप्त होते
प्रवलसंयुक्तव्यजन--
क, ख, ग, घ, ज्च र, ज, झ, है, ह, इंड, इद, ल, त्य ६, , प्प, फ, व, भ । जैसे
एक्वकर्म, कक्खडी, अग्गवेग्रो, अंग्घाडी उच्चारी, उच्छट्टो, उज्जडें, उज्झ मणं, कट्टारी, गिळूहो, कुड्डगिलोई, अड्ढअक्कली, अत्त, अत्थयारि, पद पदणो, अद्वविधार, अप्पगुत्ता, अप्फुण्ण, अब्बुद्धसिरी, अब्भक्खणं,