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:58 ] निन्नतिन दिगाए परिलक्षित की जा मकती हैं । इन व्यंजन-परिवर्तनो के ठीक वारीत देर शब्दावली की स्थिति है । इन शब्दो मे म भा ग्रा. के अनुरूप व्यजनो
पनिवर्तित न कर या उनका लोप न कर, ज्यो का त्यो लिखा गया है- जैसेनोगे, तोतडी, तुरी, पलही, पारी, वोदर, वोलो, महरो, मरालो, मगे, रूवी, गे, गेली इत्यादि अनेको देश्य शब्द है, जो व्यजन-विकार, लोप, प्रागम प्रादि घ्यिालों से परे अपने प्राचीन रूप मे सुरक्षित हैं । म. भा आ. की व्यजन परिवर्तन प्रात्री केन नद्भव और कुछ तद्भववत् देश्य शब्दो पर ही प्रभाव डालती है । परन्तु अवयं हेमचन्द्र की दृष्टि में ये सभी शब्द भी 'देश्य ही हैं (प्रर्थ की दृष्टि से। अत' पहा भी ऐने मन्डो को 'देश्य' मानकर म भा पा के अनुरूप इनमे व्यजनपरिवर्तन पी दिगानी को लक्षित किया जा रहा है । 1 लोप(7) दिव्यग्नलोप-पिरणामो स्थिर-नास्ते (त्रिविक्रम), थिरसीसोस्थिरशीर्षः
गान्यविर , घोरो स्थल । (ब) जनलोप-प्रइग्जुब प्रचिरयुवती, प्रोबायग्नो/नपा-तप , रइलवव।
नियन्, व्हरूइया महिका ।
चन्न लोप की विविध दिपायो के उदाहरण पीछे दिये जा चुके हैं। 2 प्राम1) दिव्यजनागम -प्रादि व्यजनागम पी प्रवृत्ति देशीनाममाला के किसी भी शब्द
में नहीं है । शब्द में पके स्थान पर 'ह' का पागम है-अच्छिहरूल्लो।
हाल्यो। () यव्यजनागम-मध्ययजनागम की प्रवृत्ति भी नही है। न) प्रायव्य नागम-म भा पा की प्रकृति के अनुरूप ही देशीनाममाला के
यी ने भी प्राय प्रन्ययजन के लोप की प्रवृत्ति है । सभी शब्द स्वरान्त
3. दिन
हिमातिरा, दुहियोतिप्णीका ram
माता नया में पुरोगामी और पश्चगामी दोनों ही प्रकार के समी17
! -तानम्, अगायघोप्रिग्रमयः, अगहरा
ग्निम्, नम्मुरी उन्मुष , गद्दगोगादम्य प्रादि ।