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________________ [ 257 ना. या ५ पच्यू हो-रवि . पित्यूप (6-5) | " -मविणायहर-समुद्र मणिनागगृह (6-128) । जपाना में मृत प्राणध्यनि -ह-के कुछ उदाहरण ये है उत्त, को-याट. कूप. (1-94), गणायमहो-विवाहगणक' (2-86), गगमगीहो-सामप्रधान. (2-89), चीही-मुस्तोद्भवतण (3--14) निप्प देशीनाममाला के शब्दो में प्रयुक्त व्यंजन ध्वनि ग्रामो की प्रकृति का विस्तृत विये पन कार किया गया । इसे दृष्टि में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि ध्वनियो के प्रयोग की दृष्टि नेम भा. प्रा. काल की देश्य शब्दावली पूर्णरूपेण इस काल की प्राजापौर अपना कही जाने वाली मापात्रो से कही भी अलग हटकर नहीं है। इन देश नमो में प्रयुक्त तुच नवीन सयुक्त धनिया पह, म्ह, ल्ह, आदि अवश्य प्रा भा आ मे चाहत होने वाली, न्ह, म्ह, ह, द आदि ध्वनियो के विकास की कडी के रूप मे देखी जा सकती है। या भा ग्रा की 'ड' ध्वनि के विकास की पूर्वावस्था भी इन देश्य दो मे घवहत ड' ध्वनियाम के प्रयोग के रूप में देखी जा सकती है । डा. चीनेन्द्र श्रीवास्तव ने काठी गाडी प्रादि देश्यपदो मे----'ड' की पूर्वस्थिति माना है उनका मन्तव्य है कि इन पदो को निसा भले ही सस्कृत के प्रभाव के कारण (ड) जाता रहा हो पर इनका उच्चारण निश्चित ही 'ड' की तरह होता रहा होगा।' देगी गयो पर विस्तार के माय विचार करते समय यह बताया जा चुका है कि 'देश्य' शब्द परम्परा प्रचलित ग्रामीण अशिक्षित लोगो की बोलियो के शब्द हैं । इन ग्रामीण बोलियो मे जिन ध्वनियो का व्यवहार होता रहा उन्ही का साहित्यिक मापायो मे भी व्यवहार हग्रा । भापाग्रो में समय-समय पर होने वाले ध्वनि परिवर्ननो से 'देश्य' शब्द भी प्रभावित होते रहे । अत ध्यनियो के प्रयोग की दृष्टि से साहित्यिक मापापो के शब्दो और 'देश्य' शब्दो के बीच कोई विभाजक रेखा नहीं खीची जा सकती। केवल अर्थ ही इनका विभेदक हो सकता है । निष्कर्ष रुप मे यह कहा जा सकता है कि ध्वनिग्रामिक प्रयोगो की दृष्टि से देशीनाममाला की शब्दावली पूर्णरूपेग म भा पा का ही अनुगमन करती है यदि और भी स्पष्ट कहा जाय तो इस दृष्टि से देश्य शब्द प्राकृत तथा अपभ्र श भाषा के ही अग हैं । ध्यंजन परिवर्तन - देशीनाममाला की शब्दावली (विशेपतया तद्भव) मे व्यजन-परिवर्तन की 1 अपभ्र श भापा का अध्ययन, 107
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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