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पारिसजी के विवेचन मे रपष्ट हो जाता है कि प्राचार्य हेमचन्द्र के चारों तरफ उद्भट विद्धानी की एक श्रृंखला थी। उन्होंने ऐसे वातावरण के प्रभाव के कारण ही व्याकरण, साहित्य,-प्रमाण-शारत्र, काव्य, छन्द शाग्य प्रादि लगभग काव्य तथा भापा सम्बन्धी साहित्य के सभी अगो पर कार्य किया । यदि उन्हें स्वस्थ साहित्यिक परम्परा का वातावरण न मिला होता तो शायद वे इतने विपुल प्रीर विविधात्मक ज्ञान-विज्ञान पूर्ण ग्रन्यो का निर्माण न कर पाते ।
हेमचन्द्रसूरि और सिद्धराज जयसिंह ।
पिता का घर छोड कर बालक चट्ट गदेव गुरु के प्रादेणानुमार सम्मान के एक अधिकारी उदयन मन्त्री के यहा रहने लगा था। वही मन्त्री पुत्र वाड (वाग्भट) के साथ ही उसके अध्ययन अध्यापन का प्रबन्ध हुआ। यह बात पहले ही बतायी जा चुकी है । 'सूरि' पद प्राप्त करने के बाद हेमचन्द्र अहिल्लपुर गये ।' यहा दो प्रश्न अपने आप ही उठ ग्वडे होते है-क्या हेमचन्द्र पहली बार प्रणहिलपुर गये या पहले गये थे ? दूसरी बात वे सरिपद प्राप्त करने के कितने दिन बाद अणहिल्लपुर गये ? इन दोनो ही प्रश्नो का कोई ममाधान प्राप्त नहीं होता।
प्राचार्य हेमचन्द्र और सिदराज जयसिंह से प्रथम भेट की कथा प्रभावक चरित मे इस प्रकार वरिणत है-'एक दिन सिद्धराज जयसिंह अपने हाथी पर बैठ कर नगर भ्रमण के लिए निकले । जाते समय एक दुकान के सामने उन्हे हेमचन्द्र दिपायी पडे । उन्होने हाथी रोककर उनसे कुछ कहने का आग्रह किया। इस पर हेमचन्द्र ने एक श्लोक पढा
chaityas and the Mathas of the different sects in fact were the academics and the colleges where these subjects were discussed and taught We reffered to the great dialectician Santisuri who had thirty two students studying under him Pramanasastra which included the Buddhist logic, whose cotegories were difficult to grasp This atmosphere of learding of public debates and of literary cuticism as also of literary compositions was a significant feature of the times which became more and more marked with the spread of political power of Anahillapura......It was in this entelectual milien that Hemchandra the greatest intelectual of the age lived and did his work. He must have received immence benefit and impetus from such an environment but he must have also found it very difficult to shine out amongst such a glaxy of learned
men." 1. प्र0 च0 श्लो0 64