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[ 15 ने इन सभी से प्रेरणा ग्रहण की। अणहिलपुर आने पर तो निश्चित ही वे बहुत बडे-बडे विद्वानो के सम्पर्क मे पाये ।
'प्रभावकचरित' का हेमचन्द्र से सम्बन्धित काश्मीर यात्रा प्रसग भी उनकी अध्ययनशीलता और जिज्ञासा का परिचायक है। उन दिनो काश्मीर विद्याध्ययन का बहुत वडा केन्द्र था अत हेमचन्द्र वहा अध्ययन करने के लिए जाना चाहते थे । परन्तु यात्रा मे अनेको कठिनाइया होने के कारण वे काश्मीर जाने से रोक दिये गये। उनके काश्मीर जाने का एकमात्र उद्देश्य अध्ययन ही था इस बात की पुष्टि काश्मीर देशवामिनी देवी (सरस्वती) के उल्लेख से ही हो जाती है। काश्मीर स्थित सरस्वती का मदिर उस समय विविध दिशामो से आये हुए विद्वान् पण्डितो का केन्द्र था। इन्ही पण्डितो के सम्पर्क मे रहकर ज्ञानवृद्धि करना हेमचन्द्र का प्रमुख उद्देश्य था । जब इन पण्डितो के सम्पर्क मे जाकर अध्ययन करना सम्भव न हुआ तो गुजरात मे ही स्थित काश्मीरी पण्डितो से हेमचन्द्र ने बहुत कुछ सीखा होगा । ऐतिहासिक प्रमाण यह सिद्ध करते हैं कि सिद्धराज जयसिंह के दरबार मे उस समय अनेको उद्भट विद्वान् रहते थे। बिल्हण के एक उल्लेख से विदित होता है कि उस समय जयसिंह के दरबार मे अनेको काश्मीरी पण्डित भी थे। उनमे 'उत्साह' नाम के पण्डित सर्वप्रसिद्ध थे । ये वैय्याकरण थे। सिद्धहैम शब्दानुशासन की रचना के पहले इन्ही 'उत्साह' पण्डित के हाथ ही काश्मीर के विभिन्न पुस्तकालयो से व्याकरण के आठ प्रसिद्ध ग्रन्थ हेमचन्द्र को प्राप्त हुए थे।
प्राचार्य हेमचन्द्र सिद्धराज जयसिंह के समकालीन हैं सिद्धराज जयसिंह विद्वानो का बहुत अधिक आदर करने वाला राजा था। धारानगरी के शासक भोज के दरबार की विद्वता की कहानिया आज भी चलती हैं । ऐसे ही विद्धानो का जमघट जयसिंह के दरबार मे भी था । उस समय विद्या की कोई ऐसी शाखा नही थी जिसका प्रचार गुजरात मे न रहा हो । आचार्य हेमचन्द्र ने इन विद्धानो के सम्पर्क मे रह कर बहुत कुछ सीखा था।
सिद्धराज जयसिंह के विद्वतापूर्ण दरवार का उल्लेख रसिकलाल सी पारिख ने 'काव्यानुशासन' की भुमिका मे किया है ।'
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' Tarka Sahitya and lakshana logic and the art of dilectics, literature and poeties Grammar and the philosophy of language were the subjects practiced by the cultured citizens of Aphillapura and proficiency in these subjects was a pass post to the Royal Courts and the assemblies of the learned the
(Contd)