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14 ] हैं । 'विपष्टिशलाका पुरुपचरित' की प्रशस्ति मे वे इस बात को म्वीकार भी करते हैं
___ 'तत्प्रसादादधिगतज्ञान सम्पन्न महोदयः ।। परन्तु उन्होंने किग प्रकार गुरु में विद्या सीखी इसका कोई उल्लेख नहीं किया प्रत इन सन्दन म उनकी यह स्वीकारोक्ति कोई महत्त्व नहीं रखती।
प्राचार्य हेमचन्द्र के ज्ञानार्जन और व्यनित्व निर्माण का कुछ विस्तृत उल्लेग्य प्रभावकचरित मे प्राप्त होता है-'सोमचन्द्र ने शीघ्र ही तक-लक्षगण पोर माहित्य में अधिकार प्राप्त कर लिया। परन्तु कुछ हजार पदो को कण्ठस्थ माय कर लेने में सोमचन्द्र को मतोप नही मिला अत अपने गुरु से विद्या प्राप्ति के निा काश्मीरदेशवासिनी' देवी को जाकर प्रसन्न करने की प्राना मागी । वे ताम्रलिप्ति (खम्भात) से चले और रात विताने के लिए 'श्रीरैवतावतार' नामक एक जैन मन्दिर में के। अर्धरात्रि के समय जब वे ध्यानावस्था मे बैठे थे, ब्राह्मी देवी प्रकट हुई और उन्हे काश्मीर जाने का कष्ट उठाने मे रोक दिया क्योकि सोमचन्द्र की माधना में वे अत्यन्त प्रसन्न थी । ब्राह्मी देवी ने उन्हें इच्छित फल प्रदान करने का वचन दिया । सारी रात ब्राह्मी देवी की प्रशसात्मक स्तुति में विताकर सोमचन्द्र वह अपने स्थान को वापस लौट आये । 'इसके बाद से ही वे' मिद्ध सारस्वत (अनायाम मिद्धमारस्वत भी) कहे जाने लगे । 2 'इसके बाद ही उन्होने सूरि पद प्राप्त किया ।3
___'कुमारपालप्रवन्ध' के रचयिता जिनमण्डल उपर्युक्त घटना से ही मिलतीजुलती एक अत्यन्त रहस्यात्मक घटना का उल्लेख करते हैं।
अब देखना यह है कि इन कथानो मे वास्तविक तथ्य कहा है । सोमचन्द्र के गुरु देवचन्द्र सूरि निश्चित रूप से एक उद्भट विद्वान् थे परन्तु प्रश्न यह है कि प्राचार्य हेमचन्द्र ने अध्ययन की जिन विभिन्न शाखाग्रो का पाडित्यपूर्ण प्रदर्शन अपनी रचनाओ मे किया है क्या इतना सारा ज्ञान अकेले देवचन्द्र उन्हें दे सके थे? इस
का का समाधान अत्यन्त सरल है। यदि हम हेमचन्द्र के जीवन काल के गुजरात के इतिहास को देखें तो वात अत्यन्त स्पष्ट हो जाती है। हेमचन्द्र खम्भात मे रहते थे । उस समय खम्भात एक सुन्दर बन्दरगाह होने के कारण व्यापार का केन्द्र तो था ही साथ ही समृद्ध होने के कारण-साहित्य और कला के क्षेत्र मे भी अद्वितीय था । वहा अनेको उद्भट विद्धान् अध्ययन और अध्यापन मे रत थे । प्राचाय हेमचन्द्र
1 नि पु च एलोक सख्या 15 2 प्रभाकचरित-श्लोक सख्या, 37-46 3 वही, श्लोक सख्या, 48-59