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[245 स्वीकार की है। यही स्थिति लगभग सभी वैय्याकरणो की रही है । जहा तक 'देश्य' शब्दों का प्रश्न है, हेमचन्द्र ने इनमे 'न' की स्थिति स्वीकार नहीं किया । देशीनाममाला की 63 वी कारिका की वृत्ति (पृ० 208) मे उन्होने स्पष्ट कह दिया -
"नकारादयस्तु (शब्दाः) देश्यामसभविनएवेति न निबद्धाः । यच्च 'वादो' सूत्रितमस्माभिस्तत्सस्कृत भवप्राकृतशब्दापेक्षया न देश्यपक्षेयेति सर्वमवदातम् ।"
___ इस प्रकार देश्य शब्दो मे सर्वत्र 'न' को 'ण' ही मिलता है । फलतः देशीनाममाला मे न तो नकारादि कोई शब्द है और न ही किसी अन्य स्थिति मे इसका प्रयोग ही है। इससे सबधित अन्य तथ्यो का विवेचन पीछे 'ण' ध्वनिग्राम की चर्चा के बीच किया जा चुका है।
यह प्रोप्ठ्य, श्वास, अघोष, अल्पप्राण, निरनुनासिक स्पर्शवर्ण है । देशीनाममाला मे 'प' से प्रारम्भ होने वाले शब्दो की संख्या 393 है । प्रारम्भवर्ती स्थिति का 'प' पूर्णरूपेण म. भा पा के 'प' का अनुगमन है, जिसमे प्रा भा पा 'प्र' भी प्रतिनिहित है-- प-पक्खरा-तुरगसंनाहः (6-10), पज्जा-अधिरोहिणी (6-1), पडवा-पटकुटी
(6-6), पडाली-पक्ति (6-9)। प्र7प-पच्चुत्थ-बोया हुआ.प्रत्युप्तम् (6-13), पडिच्छदो-मुखम्। प्रतिच्छन्द.
(6-24), पण्हो -स्तनधारा-प्रस्तुत (6-3) । मध्यवर्ती स्थिति मे 'प' और 'प्प' दोनो म भा आ. का ही अनुगमन करते हैं
अपारमग्गो-विश्रामः ( 1-43), उरुपुल्लो-अपूप (1-134), कडपडवा-यवनिका (2-25) | प्रप्पझो प्रात्मवश. (1-14), उप्पेहड-उद्भट (1-116), कुप्पढो
गृहाचार (2-36)। मध्यवर्ती 'प्प' मे प्रतिनिहित हैप्रा. भा आ. त्प-उप्पको-पड का उत्पड क. (1-30), उप्पीलो-संघात उत्पीछ
या पिण्ड (1-126)।
, प-कप्परि-दारितम् ।खर्पर (2-20)। " , प्र-वप्पो-सुमट [वप्र (6-88), बप्पिणो-क्षेत्रम् वप्र या वप्रि
(7-85)।
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