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________________ 244 ] -धुग्ररात्री जनर प्रवराग (5-57) तथा घूगो-गज म्यूण (5-60) मे 'व' मा: प्रा. भा. या 'ध्र' और म्य' का स्थानीय है। शेष सभी शब्दो की प्रारम्भवर्ती तिथि में यह न मा पा के 'ध' का ही अनुगमन है । मध्यवर्ती और उपान्त स्थितियो में भी 'घ' म प्रयोग है । म. मा त्रा की घोप महाप्राण ध्वनियो को 'ह' कर देने ही प्रवृत्ति के पद नया विपरीत है । 'देश्य' शब्दों की यही ता विलक्षणता है कि अधिकाशन में म. भा पा की व्याकरणिक प्रक्रियायो और ध्वनिपरिवर्तनो से मारित होते हुए भी कही नहीं अपनी मर्वया विपरीत स्थिति का प्रदर्शन करते है। भारम्भवनी-ब- दर तूलम् (5-7), वाडी-निरस्तम् (5-59), घूमरी-नीहार. (5-61) 1 मध्यवर्ती स्थिति में 'ध' और द्ध' पूर्णत. म भा पा का ही अनुगमन करते हैं~६- इग्गियूम तुहिनम् (1-80), कायनो-कामिज्जुलाय. पक्षी (2-29 ), 'कुधरी नघुमत्यः (2-32) | ध- रखधविग्रं-सज्जितम् (1-119), उद्धामो-विषमोन्नतप्रदेश (1-124), गिद्धमो अनिन्नगृहः (4-38), दोद्धियो चर्मकार. (5-44)। ग्य ती ध में प्रतिनिहित है - प्रा मा गा--पद्धविन मनाकरगाम् सर्वाक्षिकम् (1-34), प्रद्धजया-मोचकम् (जूना) ग्रजघा (1-33) । , , - ग्य-बुद्धगविनमुहो-बाल [दुग्धविकमुम्ब (5-40) । , -व-घूमरम्हिनीग्रो-वृत्तिका धूमध्वजमहिप्य. (5-62) | उपान में 'ध' और 'द' उदाहग इन प्रकार है वजनिचो-मातवाहन (3-7), छेघो-म्यामक. (3-39), पटिखधजलवाम् (6-28)। पारद मतृप्य (1-75), प्राविद -प्रेरितम् (1-63), खद्ध -मुक्तम् (2-67) नीनाममाता न जनध्वनिग्राम या सवंया प्रभाव है। भरत के समय मारतों में 'म' ही 'ग' कर देने की प्रवृत्ति बल पटी थी। स्वय हेमचन्द्र ने पीपको सारा प्रत्य के 'दादी (1-129) गृय में प्राकृत शब्दों में 'न' की स्थिति 1. ५.८१८ : 2-27)
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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