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________________ 242 ] प्रा ना प्रा. स्नाय- विष्णे-नि नेहहृदय (स्तीर्ण. (5-30), थिमिअ-स्थिरम्। निमित (5-27),येवो-बिन्दु तप (5 29 ) । प्रा मा या न्याय -थिरसीग्रो-निीक ।यि रशीप (5-31), बेरो-ब्रह्मा। म्पविर (5-29). थेरानणपद्मम् ।न्यविरा-सनम् (529)। प्रा मा प्रा नाच -न-तन्तुबायोपनाम्।तूरी।। पूरे देशीनाममाला कोण ने मध्यवती नया उपान्त्य स्थितियो मे 'य' व्यजनध्वनित्राम का नया अभाव है। इन दोनो स्थितियो मे यह मर्वत्र मयुक्त व्यजन पनिदान 'स्व' के हा ने पवहत हुना है । मध्यवर्ती'' - प्रत्यक अनवसर (1-14), अत्युबड-भल्लातकम् (1-23) उत्पन्नापत्यल्ला-पार्श्वयनपरिवर्तनम् (1-122)। नरवी' में प्रनिनिहित है - प्रा ना मा 'स्तृ'- प्रत्यागे-महापम् !प्रा+7 (1-9)। . . 'य'-प्रन्युट-ननुप्रस्थल (1-9), उत्यग्यो सम्भद -उत्+स्थग् (1-93)। " , 'न'-नन्धरी-हान चिन्तरि (3-2), पत्यरा-चरणाघातः/प्रस्तरा (6-8)। , ''-पत्यउटो-चन्ताय बित्र उटज (7-45) । " , 'ई'-मित्या-न्द्र मिद्राय (१-31)। प्रा मा प्रा. ' - प्रगुत-अगुनीयम् अगुष्ठ (1-31) । मानव उदाहगाउन प्रमार हैं - उदलो- विलन्त्र (1-96), श्रीनन्यो-विदारित (1-56), जोडिन्ध-निट (1-368) । मानार, घोष, अल्पप्रमा, निन्तनामिज म्पर्ण वर्ण है । देशीनाममा ':' में प्रारमोने वाले पन्दी की नन्या 118 है। इनमें केवल दो ही पर निद्रामा 'द' प्रा भा. या 'च' का म्यानीय है वे हैं-दोम नयत (5.51) नवा दीभिगी ज्योत्स्ना (5-50 ) । इनके अतिरिक्त परमा ':' मा प्रा 'द' काही अनुगमन है । ! !:
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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