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________________ [ 241 -त- अतरिज्ज-टीसूत्रम् (1-35), शतेल्ली-मध्यम (1-55), उइतरण-उत्तरीयम् (1-103)। या मा पा दात-ममति न । मध्य दिनम् (6-124)। जात-मती-विवागणक (मन्त्री (6-111)। -त- उच्चत्तवरत्त -पायो स्थूलम (1-139) खित्तय अनर्थः (2-79) गत्ताडी-गायिका (2-82) । मध्यवर्ती-त- मे प्रतिनिहित हैप्रा मा पा - प्रोसित्त -प्रवलिप्त अवसिक्तम् (1-158) । -द- गवत्त -घास गो+ प्रद् (2-85)। , -त- पत्तट्ठो बहशिक्षित प्राप्तार्थः (6-68), सत्तावीसजोप्रणो इन्दु मप्तविणतियुज् (8-22)। " , -- वच्छी उत्तो-नापित (वात्मीपुत्र (7-47) । , , -तु- वरइत्तो-अभिनववर वरयितृक (7.44) । उपान्त मे त और त के उदाहरण इस प्रकार है -त- श्रद्ध तो-पर्यन्त (सीमा) (1-8), मोसायतो-ज़म्भालसः ____(1-170) कडत-मूलशाकम् (2-56) । -त- प्रणुमुत्ती अनुकूल (1-25), अत्ता-जननी (1-5), अप्पगुत्ता-केवाच (1-29), कत्ता-कौडी (21) । यह दन्त्य, श्वास, अघोप, महाप्राण, निरनुनासिक स्पर्शवर्ण है । देशीनाममाला मे 'थ' मे प्रारम्भ होने वाले कुल 47 शब्द हैं । प्रा भा पा (संस्कृत) मे '' प्वनि से प्रारम्भ होने वाले शब्दो की संख्या अतिस्वल्प है।' म. भा. प्रा. मे 'थ' का प्रयोग प्राय प्रा. भा प्रा. 'रथ' 'स्त' तथा 'त्स' आदि के स्थान पर हुआ है । देशीनाममाला के तद्भव शब्दो मे यह स्थिति ज्यो की त्यो है । देश्य शब्दो मे 'थ' व्यजन ध्वनिग्राम का प्रयोग परिशुद्ध रूप मे हुया है । प्रारम्भवर्ती स्थिति मे 'थ' थक्को- अवसर. (5-24), थव-विषमम् (5-24), थवो पशु-(5-24)। प्रा. भा श्रा. त्स74 थरू-तलवार की मूठ/त्सरुः (5-24)। 1. आप्टे ने अपनी सस्कृत हिनशनरी ( 489) में थवं, धूप, थुङ्, थूत्कार, -फूल इतने ही शब्द 'घ' से प्रारम्भ होने वाले बताया है।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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