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240 मे 'ह' की स्थिति अति सुलभ है । यहा यह म भा पा का ही अनुगमन करता है। प्रा भा पा से लेकर पा भा ग्रा. तक इसके विकास की अवस्था एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट की जा सकती हैप्रा भा पा. कृपण म भा आ. वह आ भा. पा. कान्ह । दन्त्य या वर्षी व्यंजनध्वनिग्राम
म भा प्रा के दन्त्य व्यजन ध्वनिग्रामो की प्रकृति का विश्लेषण करते हुए डा वीरेन्द्र श्रीवास्तव लिखते हैं- "जिह्वात्र या जिह्वानीक द्वारा पर के दातो के स्पर्श से मुखविवर मे आती हुई श्वासवायु का अवरोध होकर स्फोटन होता है। दन्त के अग्र, मध्य और मूल का विभिन्न दलों में उपयोग होता है । अक्प्रातिशास्त्य ने तकारवर्ण का उच्चारण स्थान मितामूलीय बताया है (दन्तमूलीयन्तु। तकार वर्ण• 1-19) अव भी त और थ इसी तरह के वणं हैं । द और ध के उच्चारग मे दन्त के मध्य और न के उच्चारण में अग्रभाग का उपयोग होने लगा । पाणिनीय शिक्षा में सभी के लिए सामान्य दन्त्य शब्द का प्रयोग है 11 प्रा. भा. श्रा में दन्त्य कहे जाने वाले वरों का उच्चारण वर्क्स हो गया है। दे. ना मा के दन्त्यवों की प्रकृनि म मा पा सी ही है। दन्त्यो मे केवल त, थ, द, ६ वर्गों का ही प्रयोग हुअा है। न सर्वत्र 'ए' हो गया है, यह पहले ही प्रतिपादित किया जा चुका है।
यह दन्त्य, श्वास, घोप, अल्पप्राण, निरनुनासिक स्पर्ण वर्ण है। देशीनाममाला में 'त' से प्रारम्भ होने वाले शब्दों की सख्या 110 है। प्रारम्भवर्ती स्थिति में यह म भा पा के 'त' का ही अनुगमन है। मध्यवर्ती स्थिति में कही,
ही न मा ग्रा. के अनुरूप ही यह 'द' का स्थानीय होकर व्यवहन हुआ है। इस गेश के शब्दो मे इसकी विभिन्न चिनिया इन प्रकार है। प्रारम्मवर्ती -त- तहरी-पड्किलासुरा 15-2), तलारी, नगररक्षक. (5-3),
तुगी -रात्रि (5-14), तुण्ही-मूकर (5-14) | मध्यवर्ती -त-त
1. मन मापा र अध्ययन ५ 93 2. ममिन मे तृटम' या अर्थ 'मोना (रिया) है। हम सब्द को तामित्र की सम्पत्ति माना ना