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________________ 226 } नामिक्य ध्वनियो ड, ज और न् का भी अस्तित्व कुछ प्रादेशिक भापानो और उनके । ग्रन्यो' में मिलता है, परन्तु प्राय इनका व्यवहार नही ही हुआ है। ___ म मा प्रा के उपयुक्त व्यजन ध्वनिग्रामो का प्रयोग देशीनाममाला के शब्दो मे भी हुआ है । आदिम य का ज तथा उसका अप्रयोग ड, ज, न जैसी अनुनामिक ध्वनियो का अभाव तथा ऊप्म श, प प्रादि का अप्रयोग म. भा पा की सारी विशेषताएं इन शब्दो मे देखी जा सकती है। इनमें प्रयुक्त व्यजन ध्वनिग्रामो की प्रकृति का विवेचन इस प्रकार है। क-कोमलतालव्य या कण्ठ्य' वाम अघोप, अल्पप्राण, निरनुनासिक म्पर्श ध्वनि है । वैदिक मापा मे यह शुद्ध कण्ठ्य ध्वनि थी। मम्कृत मे इसका उच्चारण जिह्वामूल से हटकर जिह्वा के पश्च भाग और कण्ठ के अन्तिम ऊपरी भाग से होने लगा। या भा प्रा. मे इसका उच्चारण जिह्वापश्च और कोमलतालु से होने लगा है । यही उच्चारण म भा पा मे भी रहा होगा । दे ना. मा. मे व्यवहृत 'क' ध्वनिग्राम म भा ग्रा. के ही उच्चारण का अनुसरण करने वाला माना जा सकता है । म भा. प्रा. मे किमी भी व्य नन ध्वनिग्राम की शुद्ध स्थिति प्रादि और मध्य में ही मिलती है। व्यजनान्त पदो का यहा सर्वथा अभाव है। सभी पद स्वगन्त ही हैं, अत व्यजन ध्वनिग्रामो की शुद्ध स्थिति अन्त में नहीं मिलती। यह विशिष्टता दे ना मा के शन्दो की भी है। प्रा भा या का 'क्' ध्वनिग्राम देश्य शब्दो मे सर्वथा सुरक्षित है । जैसे ___कमलो-पिठर (2-54), कराली-दन्तपवनकाप्ठम् (2-12) कराइणीशारमनिता (2-18)। म. भा या मे प्रा भा पा के क, वल, स्क, क्व आदि के स्थानीय ध्वनिनाम 'क' का व्यवहार हुआ है । परन्तु अनात व्युत्पत्तिक 'देण्य' शब्दो मे इस लियम की परिणति नहीं देखी जाती । देशीनाममाला के शब्दो का मध्यवर्ती 'क' ध्वनिग्राम म भा पा के 'क्' या 'क' का ही अनुमरण है जैसे - क- अकानि पर्याप्तम् (1-8), अकारो साहाय्यम् (1-9), कवेली-अशोकवृक्ष (2-12), ककोड (2-7)। 1. दान के अन्य पठमग्उि -कीनिलता आदि में बनस्वार को परमवणं बनाकर इ जन का मणिय म्बीकार किया गया है। श्री मायाणी ने पाण्डलिपि के जनम्बार को निष्कारण पनमदग्णिन कर मदिन गया है मगया उममे ह ज और न का अस्तित्व मदेहा. पद है। कालिना मादि में परमवणं का म्यान मस्कृत तत्मम के यनकरण पर है।" - यपध्र शभाषा का मध्ययन-4 76, डा वीरेन्द्र श्री.
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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