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क्क–कक्कसारो-दगोदन (2-14), एक्केक्कम् - अन्योन्यम् ( 1 - 145 ) (जुग्रा) 1-159) श्रादि ।
ओक्कणी - यूक
शब्दो के उपान्त मे 'क' 'क्क' ध्वनिग्राम के प्रयोग के कुछ उदाहरण ये हैंकइ को - निकर (2-13 ) प्रक्का - भगिनी ( 16 ) प्रक्को - दूत ( 1-6 ) । विशेष - देशीनाममाला मे 'कु' ध्वनिग्राम से प्रारम्भ होने वाले शब्द संख्या मे
312 है।
ख
कण्ठ्य या कोमलतालव्य, श्वाम ग्रघोष, व्यजन ध्वनिग्राम है । दे ना मा की शब्दावली मे
महाप्राण इसकी भी
।
श्रौर मध्यवर्ती स्थिति ही मिलती है अन्तिम स्थिति 'उपान्त' रुप मे ही
सभी शब्दो के स्वरान्त होने के कारण इसकी मिलती है । इस कोश मे 'ख' से प्रारम्भ होने
वाले शब्दों की संख्या 81 है ।
तथा निरनुनासिक, केवल प्रारम्भवर्ती
श्रारम्भवर्ती स्थिति मे यह दो रूपो मे मिलता है
( 1 ) म भा श्रा का मूल 'ख्' ध्वनिग्राम - जैसे - खट्टिक्को-शौनिक. (2-70) खडक्की - लघुद्धारम् ( हिन्दी खिडकी ) (2-71), खप्परो- रुक्ष ( हिन्दी खपड़ा ) (2-69) I
(2) प्रा भा. आ के 'स्क' का स्थानीय ख-जैसे खघुग्गी ८ स्कन्धाग्निस्थूलेन्वनाग्नि ( 2-70 ), खवममो स्कन्वमृश् या स्कन्ध-अस-बाहु. (2-71), खवयट्टी [स्कन्वयष्टि - वाहु ( 2-71 ), प्रा भा श्रा की इस कोटि के कुल तीन ही शब्द हैं ।
प्रा भा ग्रा के 'क्ष' स्थानीय 'ख' दे ना. मा किसी भी शब्द मे प्रारम्भवर्ती स्थिति मे नही मिलता । केवल मध्यवर्ती स्थिति मे आया है ।
मध्यवर्ती स्थिति मे इस कोश के शब्दो मे आया हुआ 'ख' म. भा. झा के 'ख' 'क्ख' का अनुगमन है ।
ख - भखरो - शुष्कतरु ( 3-54), झखो - तुष्ट (3-53 ) 1
क्ख - ततुक्खोडी - वायकतन्त्रोपकरण (5-7) खिक्खिरी - यष्टि ( 2-73), खणुक्खुडिया - घ्राणम् ( 2-76 ) ।
क्खक्ष - चक्खुरक्खणी - लज्जा ( 37 ), गक्खत्तणोमि - विष्णु ( 4-22 ), क्खLक्ष्य — हइलक्ख- रति सयोगः ८ रतिलक्ष्य ( 7-13 ) ।
क्खत्क्ष - हक्खुत्त - उत्पटित उत्क्षिप्त ।